धर्म और विज्ञान एक दूसरे के पूरक
आज के वैज्ञानिक युग में जहां विज्ञान अपने चरम पर है, तो सब कुछ संभव सा लगता है. अध्यात्म (धर्म) को बेकार की बात और आडंबर समझा जाता है, जिसमें पड़ने का कोई लाभ नहीं दिखता. ऐसे विचार अज्ञानियों अथवा मानववादियों का ही रहा है, जो समाज की जड़ में फैल गया है. उनका मत […]
आज के वैज्ञानिक युग में जहां विज्ञान अपने चरम पर है, तो सब कुछ संभव सा लगता है. अध्यात्म (धर्म) को बेकार की बात और आडंबर समझा जाता है, जिसमें पड़ने का कोई लाभ नहीं दिखता.
ऐसे विचार अज्ञानियों अथवा मानववादियों का ही रहा है, जो समाज की जड़ में फैल गया है. उनका मत है कि विज्ञान और अध्यात्म साथ-साथ नहीं रह सकते. यह उनका अधूरा ज्ञान है.
यह खुद ही सोचने की बात है कि विज्ञान और अध्यात्म दोनों का ही उद्देश्य मानव हित का कल्याण कर उसे पूर्ण सुखी बनाना है. ऐसे में दोनों एक-दूसरे के विरोधी कैसे हो सकते हैं?
वास्तव में ये एक-दूसरे के पूरक हैं. विज्ञान को वास्तविक रूप से जाननेवाला यह भी जान लेता है कि विज्ञान धर्म के बिना अधूरा है. प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन का ही कथन है कि धर्म के बिना विज्ञान लंगड़ा है और विज्ञान के बिना धर्म अंधा है.
स्पष्ट है कि वास्तविक धर्म (पाखंड नहीं) और विज्ञान में अंतर नहीं है. यह इससे भी सिद्ध होता है कि जो धर्माचरण, शास्त्रर्थ हमारे ऋ षियों ने बतायी, वह पूरी तरह से वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित रहे हैं, परंतु कुछ लोगों के कारण विज्ञान अध्यात्म से अलग समझा जाने लगा है. लोग विज्ञान को ही सब कुछ मान बैठे तथा उसी पर निर्भर हो गये हैं.
अत: देश-दुनिया के विकास और कल्याण के लिए यह बहुत जरूरी है कि अध्यात्म और विज्ञान को साथ-साथ ले कर चले. अन्यथा परिणाम भयावह ही होंगे, जैसा कि आज-कल सभी जगह देखने को अक्सर मिलते हैं.
आज अगर प्राकृतिक आपदाएं आती हैं, तो उसे रोकने के लिए विज्ञान के पास कोई ठोस साधन नहीं है, लेकिन अध्यात्म और विज्ञान मिल जाते हैं, तो वृक्ष पूजा से प्राकृतिक आपदाओं को रोकना संभव है. विज्ञान और धर्म दोनों प्रकृति के आराधक हैं.
ज्ञानदीप जोशी, रांची