कुणाल देव
प्रभात खबर, जमशेदपुर
हमारे माननीयगण,
आप लोगों की दया का बोझ हम पर इतना बढ़ गया है कि अब मौत जिंदगी से ज्यादा प्यारी लगने लगी है. हम उकता गये हैं. समझ में नहीं आ रहा कि क्या करें. प्रकृति ने हमारी फसल बर्बाद कर दी. हम दुखी हुए. आप जब हमारे गांव आये तो लगा कि आपके अंदर भी आत्मा नामक तत्व विद्यमान है.
लेकिन, जब आपने हमारे भाइयों की चिता पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकनी शुरू कर दी, तो हमारी आत्मा हमें अपनों के बलिदान पर धिक्कारने लगी. हमारी बेटी शादी के लायक है. बेटा स्कूल जाता है. घर में बूढ़े मां-बाप हैं.
उनकी जिंदगी में अब रोटी से ज्यादा जरूरी दवाएं हैं. खेती भी लंबी-चौडी नहीं है. साहूकार सूदखोर है. वह सामने से वार करता है. हम बिलिबला जाते हैं. लेकिन, यकीन मानिये आपकी रहनुमाई की चादर में छिपे खंजर उससे कहीं ज्यादा चुभते हैं. खेत में जब फसल तैयार हो जाती है, तब बिचौलिया गिद्ध की तरह उस पर नजरें गड़ा देता है. हमें मिलने वाला मुनाफा खा जाता है.
यह काम बहुत घिनौना है, लेकिन इससे वह अपने बच्चों के लिए रोटी का जुगाड़ करता है. वह धनिकों की श्रेणी में नहीं आता. याद करिये, जब आपने खेत बेच कर पहली बार वार्ड मेंबर का चुनाव लड़ा था. आपकी सादगी पर हमने आपको जिताया था. और आपने इस जीत को टकसाल में बदल दिया. यह सिर्फ आपकी बात नहीं है, बल्किआपकी बिरादरी ही ऐसी है, जहां चोर दरवाजे से लक्ष्मी की कृपा अहर्निश बरसती है.
आप अफसरों से लेकर व्यापारियों तक से उनकी संपत्ति का हिसाब मांगते हैं और जब आपकी बारी आती है तो गिरोहबंद हो जाते हैं. इतना सब होने के बावजूद हम मानते थे कि आपके विशालकाय, स्थूल शरीर में छोटी सी आत्मा कहीं न कहीं जरूर मौजूद होगी, लेकिन दिल्ली की घटना ने हमें दहला दिया. एक किसान अपनी बात रखने के लिए बार-बार चिल्लाता रहा और आप उसे भी राजनीतिक साजिश समझते रहे.
आप पुलिस बुलाने की बात करते रहे और उस दुखी किसान ने आपके सामने मौत को चूम लिया. इतना होने के बावजूद मैं सिरे से ‘आप’ पर अविश्वास न कर सका. उम्मीद थी कि खुद के पास आत्मा होने का आपके द्वारा किये जाने वाला बार-बार का दावा सच भी हो सकता है.
लेकिन, जब आपने किसान की खुदकुशी के बावजूद अपनी मजलिस जारी रखी, तब यकीन हो गया कि जब ऊपरवाला किसी को माननीय बनाता होगा तो उसके शरीर से दिल और आत्मा निकाल लेता होगा. भूमि अधिग्रहण कानून बने यह सरकार की जिद है. कानून बनने नहीं देंगे, यह आपकी जिद है.
आपकी जिद के बीच तो हम सिर्फ मोहरा भर रह गये हैं. अब हमें और मोहरा नहीं बनना. आपसे करबद्ध निवेदन है कि आप हमें हमारी हाल पर छोड़ दें.
आपका एक किसान- बेबाक सिंह