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स्कूलों में शिक्षा के अलावा बहुत कुछ!

मध्याह्न् भोजन योजना केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना है. इससे गरीब व स्कूल न जानेवाले बच्चों को स्कूलों से जोड़ने में निश्चित ही लाभ मिला है. लेकिन, इस योजना के शुरू होने के साथ ही स्कूली शिक्षा में गुणात्मक हृस हुआ है, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी. इस योजना में निहित लाभ के साथ–साथ कई […]

मध्याह्न् भोजन योजना केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना है. इससे गरीब स्कूल जानेवाले बच्चों को स्कूलों से जोड़ने में निश्चित ही लाभ मिला है. लेकिन, इस योजना के शुरू होने के साथ ही स्कूली शिक्षा में गुणात्मक हृस हुआ है, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी. इस योजना में निहित लाभ के साथसाथ कई खामियां भी सामने आयीं. सबसे अधिक परेशानी शिक्षकों को होने लगी. खास कर प्राथमिक स्कूलों के शिक्षकों को अब पढ़ाने के साथसाथ चावल उठाव से लेकर इस योजना से संबंधित मासिक उपयोगिता प्रमाणपत्र रोकड़ पंजी का संधारण भी करना पड़ता है.

वहीं समयसमय पर शिक्षकों को गणना कार्य में भी लगाया जाता है. ऐसे में स्कूलों में गुणात्मक शिक्षा की बात करना, कहीं कहीं विरोधाभास को दर्शाता है. एक तो स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है. जो शिक्षक हैं भी उनके पास इतना समय नहीं है कि बच्चों के पठनपाठन पर ध्यान दें. अगर एमडीएम में गड़बड़ी पायी गयी, तो ग्रामीण से लेकर वरीय अधिकारी तक शिक्षकों की गरदन पकड़ लेते हैं. बिहार के मशरक कांड के बाद शिक्षक इस योजना को लेकर यूं भी सशंकित हैं.

ऐसे में झारखंड में शिक्षक संघों का एमडीएम कार्य से अलग रहने का निर्णय इस संदर्भ में उचित लगता है. हालांकि एमडीएम के संचालन के लिए स्कूलों में सरस्वती वाहिनी समिति का गठन किया गया है. लेकिन, इस समिति से जुड़े लोगों के कार्यो की मॉनिटरिंग भी शिक्षकों को ही करनी पड़ती है.

अब सवाल उठता है कि क्या एमडीएम को बंद कर दिया जाये? एक तरफ केंद्र सरकार खाद्य सुरक्षा कानून लागू करने जा रही है, दूसरी तरफ स्कूलों में पढ़नेवाले बच्चों को एक समय का भोजन अगर स्कूल में मिल जाता है तो इसमें क्या बुराई है? बच्चे पढ़ाई करने के साथसाथ स्कूल में पेट भर भोजन कर लेते हैं, इससे बच्चों में स्कूल आने की ललक रहती है. ऐसे में एमडीएम को ज्यादा कारगार बनाने के लिए केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक को पुनर्विचार करने की जरूरत है.

बच्चे स्कूल में जो मध्याह्न् भोजन करें, वह पौष्टिक सुरक्षित हो, इसके लिए सभी स्कूलों में अलग से मजबूत संस्था की जरूरत है. शिक्षकों को इसमें नहीं लगाया जाये. झारखंड के शिक्षकों की यह पहल एकदम जायज है.

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