आखिर पारदर्शिता से इतना डर क्यों!
गुजरात में नरेंद्र मोदी सरकार और राज्यपाल कमला बेनीवाल एक बार फिर आमने-सामने हैं. मसला वही है- लोकायुक्त की नियुक्ति का. लोकायुक्त की नियुक्ति पर पहले गुजरात हाइकोर्ट, फिर सुप्रीम कोर्ट में मुंह की खा चुकी राज्य सरकार लोकायुक्त की नियुक्ति की प्रक्रिया को ही सिर के बल पलट देना चाहती है. इसके लिए गुजरात […]
गुजरात में नरेंद्र मोदी सरकार और राज्यपाल कमला बेनीवाल एक बार फिर आमने-सामने हैं. मसला वही है- लोकायुक्त की नियुक्ति का. लोकायुक्त की नियुक्ति पर पहले गुजरात हाइकोर्ट, फिर सुप्रीम कोर्ट में मुंह की खा चुकी राज्य सरकार लोकायुक्त की नियुक्ति की प्रक्रिया को ही सिर के बल पलट देना चाहती है. इसके लिए गुजरात लोकायुक्त आयोग विधेयक, 2013 को विधानसभा के बजट सत्र में ही पारित किया जा चुका है. यह विधेयक लोकायुक्त की नियुक्ति में राज्यपाल और राज्य के मुख्य न्यायाधीश की भूमिका को गौण कर राज्य सरकार को सर्वशक्तिमान बनाता है. अब कमला बेनीवाल द्वारा विधेयक को लौटाये जाने से एक तरह का संकट उत्पन्न हो गया है.
दोनों पक्ष इस मामले में आगे क्या रुख अपनाते हैं, इस बारे में अभी अनुमान ही लगाया जा सकता है, लेकिन इस टकराव के कारण निकट भविष्य में राज्य में लोकायुक्त की नियुक्ति अधर में लटक गया दिखाई दे रहा है. लोकायुक्त के चयन की प्रक्रिया को अपने मनमाफिक बनाने की राज्य सरकार की बेचैनी को जहां इस बात का प्रमाण माना जा सकता है कि हर सरकार को पारदर्शिता और निगरानी से डर लगता है, वहीं राज्यपाल बनाम सरकार का विवाद यह सवाल भी पूछ रहा है कि टकराव की ऐसी स्थिति को कैसे टाला जा सकता है? गुजरात सरकार राज्यपाल पर केंद्र के इशारे पर काम करने का आरोप लगाती रही है. कमला बेनीवाल का कांग्रेस से नाता रहा है और वे राजस्थान में कांग्रेसी सरकारों में मंत्री रह चुकी हैं.
टकराव की ऐसी स्थिति से बचने के लिए जरूरी है कि राज्यपाल की नियुक्ति में सरकारिया आयोग की सिफारिशों को भी अमल में लाया जाये, जिसमें किसी ख्यातिप्राप्त तटस्थ शख्सीयत को और खास कर विपक्ष के शासनवाले राज्यों में शासक दल से संबंध न रखनेवाले राजनीतिज्ञ को राज्यपाल बनाने जाने की बात की गयी है. इससे कम से कम इतना तो होगा कि राज्यपाल पर पूर्वाग्रह से भर कर काम करने के आरोपों को मजबूती नहीं मिलेगी. गुजरात में लोकायुक्त पर मौजूदा विवाद शासन को पारदर्शी बनाने की मुहिम को मजबूत बनाने के साथ-साथ राज्यपाल के पद को विवादों से दूर रखने की जरूरत की ओर ध्यान आकर्षित कर रहा है.