बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि की मार पूरे उत्तर भारत के किसानों पर पड़ी है. कई किसान रबी की फसल चौपट हो जाने के गम में खुदकुशी कर चुके हैं. कई की सदमा लगने से मौत हो चुकी है. किसानों पर आयी इस मुसीबत की अनुगूंज देश की राजधानी दिल्ली तक सुनी जा रही है.
इन सबके परिणामस्वरूप, मोदी सरकार ने मुआवजे के लिए कम से कम 50 फीसदी नुकसान की शर्त को बदल कर 33 फीसदी कर दिया है. यानी कि अब आधी की जगह एक तिहाई फसल के नुकसान होने पर भी मुआवजा मिलेगा. मुआवजे की रकम भी 50 फीसदी बढ़ा दी गयी है. इन फैसलों से थोड़ी ही सही, पर किसानों को कुछ न कुछ राहत जरूर मिली है. लेकिन झारखंड के ज्यादातर किसानों को इन सबसे कोई फायदा नहीं मिलने वाला है.
इसकी वजह यह है कि जो मुआवजा घोषित होता है, वह गेहूं, सरसों जैसी प्रमुख फसलों के लिए होता है. जबकि झारखंड के किसान इस मौसम में मुख्य रूप से सब्जियों की ही खेती करते हैं. सब्जियों की खेती मुआवजे के दायरे में नहीं आती. झारखंड में बेमौसम बारिश और ओले पड़ने की वजह से गर्मी में होनेवाली सब्जियों जैसे भिंडी, नेनुआ, करेला, शिमला मिर्च वगैरह को भारी नुकसान हुआ है.
सब्जियों की खेती में काफी लागत लगती है. बीज से लेकर कीटनाशक तक खरीदना पड़ता है. अब खेती पूरी तरह से बाजार पर निर्भर हो चुकी है. न तो घर मे बीज रहते हैं, न गोबर की खाद इसलिए खेती की लागत बढ़ चुकी है. गरमियों में सब्जी की खेती में नियमित रूप से पानी देना पड़ता है, इसके लिए सिंचाई के खास इंतजाम करने पड़ते हैं. कई बड़े किसानों ने टपक -सिंचाई का भी इंतजाम कर रखा है, जिसमें काफी निवेश करना पड़ता है.
कुल मिला कर देखें, तो सब्जियों की खेती में काफी पूंजी लगती है. इसके अलावा इस पर मौसम की मार भी जल्दी और ज्यादा पड़ती है. सब्जियों की नाजुक लताएं व पौधे तेज बारिश, गरमी या ओले से बहुत आसानी से बर्बाद हो जाते हैं.
यानी कि सब्जी की खेती में काफी जोखिम है. इसके बावजूद सरकार ने इसे मुआवजे के दायरे में नहीं रखा है. सरकार को चाहिए कि वह सब्जियों की बर्बाद हुई खेती के लिए मुआवजा दे, ताकि झारखंड के किसानों को भी राहत मिले.