जिंदगी का भरोसा नहीं, झगड़े मत करो

दक्षा वैदकर प्रभात खबर, पटना शनिवार सुबह से भूकंप के झटकों का जो सिलसिला शुरू हुआ, वो मंगलवार तक जारी है. हालांकि अब झटके हल्के हो गये हैं, लेकिन दहशत उतनी ही है. भूकंप को खुद महसूस करने का यह मेरा पहला अनुभव था. हमेशा सिर्फ सुना था, लेकिन शनिवार दोपहर जब अपने आसपास की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 29, 2015 5:21 AM
दक्षा वैदकर
प्रभात खबर, पटना
शनिवार सुबह से भूकंप के झटकों का जो सिलसिला शुरू हुआ, वो मंगलवार तक जारी है. हालांकि अब झटके हल्के हो गये हैं, लेकिन दहशत उतनी ही है. भूकंप को खुद महसूस करने का यह मेरा पहला अनुभव था.
हमेशा सिर्फ सुना था, लेकिन शनिवार दोपहर जब अपने आसपास की सभी चीजों को और खुद को इतनी जोर से हिलते देखा, तो कांप गयी. सड़क पर पहुंचने के काफी देर बाद तक पैर कांपते रहे.
जब थोड़ा संभली, तो मम्मी-पापा को फोन लगाना शुरू किया, लेकिन बहुत देर तक फोन नहीं लगा. घबरा गयी. बहुत देर बाद बात हुई कि वे इंदौर में ठीक हैं.
उन्हें भूकंप महसूस ही नहीं हुआ. इसके बाद पूरे दिन में पांच-छह बार झटके महसूस हुए और वही भागने का सिलसिला जारी रहा. सोचा था कि रात भर जागूंगी, ताकि तुरंत भाग सकूं. लेकिन यही सब सोचते-सोचते कब नींद लग गयी, पता ही नहीं चला. वो कहते हैं न, दिनभर जैसा सोचो, रात को सपना भी उसी से जुड़ा आता है, मेरे साथ भी वही हुआ. सपना बेहद ही डरावना था.
इसमें देर रात भूकंप आया. सभी लोग बाहर भाग गये. मैं नींद में होने की वजह से अपने कमरे में सोती रह गयी. अपार्टमेंट की छत गिर गयी और मैं दब तक मर गयी. दूसरे दिन मेरे ही अखबार में छप रहा है कि भूकंप में हमारी एक साथी दक्षा वैदकर की मृत्यु हो गयी. सब जगह रोना-गाना, फोन, फेसबुक पर इसकी जानकारी, आरआइपी लिखना, बॉडी ले जाना.. सपने में उन लोगों को भी रोते देखा, जिनसे सालों से मैंने बात नहीं की.
जब सपना टूटा, तो खुद को बहुत समझदार पाया. अहसास हुआ कि जिंदगी का कोई भरोसा नहीं है. आज हम लोग साथ हैं, तो कल नहीं. कब, किसके साथ क्या बुरा हो जाये, ये कौन जानता है. जब कोई अपना खो जाता है, तो रोने के अलावा हमारे पास कुछ नहीं बचता. हम सोचते रह जाते हैं कि काश झगड़ा भूल कर बात कर ली होती. फिर क्या फर्क पड़ता है कि पहले सॉरी किसने कहा.
सुबह अपनी उस दोस्त को मैसेज करने का निर्णय लिया, जिससे चार साल पहले झगड़ा कर दोस्ती तोड़ दी थी और बीती रात सपने में उसे भी अपने लिये रोते देखा था. वैसे बीच में कई बार लगा था कि बात करूं, लेकिन ईगो आड़े आ जा रहा था. भूकंप के झटकों ने ईगो-विगो की सारी दीवारें गिरा दी थीं.
वॉट्सएप पर उसका प्रोफाइल फोटो देखा. हंसती-मुस्कुराती यह वही मेरी पुरानी सहेली थी. ‘हाय, कैसी है? पहचाना मुङो?’ मैंने मैसेज किया और तुरंत उसका जवाब आया. ‘मैं अभी तुम्हारे ही बारे में सोच रही थी. पटना में भी भूकंप का झटका लगा था न.. कैसी हो तुम. सब ठीक है न..?’ यह सुन मैं पूरी तरह पिघल गयी.
बातों का सिलसिला चल पड़ा और हमने पुरानी बीती बातें भूल कर दुबारा पहले जैसी दोस्त बनने का एक-दूसरे से वादा ले लिया. एक घंटे लगातार चैट करने के बाद मैं काफी अच्छा महसूस कर रही हूं. लग रहा है कि दिल से बहुत बड़ा कोई बोझ हट गया.

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