नेपाल की त्रसदी से सबक लेना जरूरी

नेपाल में भूकंप की त्रसदी विभीषिका का एक भयानक दृश्य ही नहीं, बल्कि एक गंभीर चेतावनी भी है. प्राकृतिक आपदाओं पर मनुष्य का वश नहीं है, पर संभावित तबाही के असर को कम किया जा सकता है. समूचा भारत भूकंप-संभावित क्षेत्र है, करीब 60 फीसदी अधिक खतरे के दायरे में आता है, जिसमें देश के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 29, 2015 5:23 AM
नेपाल में भूकंप की त्रसदी विभीषिका का एक भयानक दृश्य ही नहीं, बल्कि एक गंभीर चेतावनी भी है. प्राकृतिक आपदाओं पर मनुष्य का वश नहीं है, पर संभावित तबाही के असर को कम किया जा सकता है.
समूचा भारत भूकंप-संभावित क्षेत्र है, करीब 60 फीसदी अधिक खतरे के दायरे में आता है, जिसमें देश के 38 शहर शामिल हैं. 2006 में गृह मंत्रलय के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा तैयार रिपोर्ट के अनुसार, इनशहरों में ज्यादातर निर्माण भूकंप-रोधी नहीं हैं, इसलिए भूकंप की स्थिति में ये भवन किसी भयावह बर्बादी का शिकार बन सकते हैं. विशेषज्ञ कहते हैं कि दिल्ली में 80 फीसदी भवन तीव्र भूकंप का झटका बर्दाश्त नहीं कर पायेंगे. जब देश की राजधानी में हालात ऐसे हैं, तो अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल नहीं है कि अन्य शहरों की दशा क्या है.
दिल्ली के अलावा श्रीनगर, गुवाहाटी, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता जैसे प्रमुख शहर भी संभावित खतरे वाले जोन में हैं. देश में शहरीकरण की तेज रफ्तार और विकास की अंधी दौड़ ने जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित किया है. महानगरों से कस्बों तक आबादी का घनत्व तेजी से बढ़ रहा है. इस वजह से तंग गलियों में भी रिहायशी और व्यावसायिक बहुमंजिली इमारतें धड़ल्ले से बन रही हैं, जहां से आपदा के वक्त निकलना संभव नहीं. भारतीय मानक ब्यूरो ने 1962 में पहली बार भूकंप-रोधी निर्माण का दिशा-निर्देश जारी किया था, जिसे आखिरी बार 2005 में संशोधित किया था.
लेकिन इन निर्देशों के बारे में जागरूकता न के बराबर है तथा निर्माण में संलग्न संस्थाएं इसके प्रति बेपरवाह हैं. अनधिकृत कॉलोनियों को छोड़ दें, सरकार और निजी कंपनियों द्वारा बनाये भवनों में भी ब्यूरो के निर्देशों की अवहेलना की जाती है. प्रशासन की लापरवाही और भ्रष्टाचार के कारण निर्माण कंपनियां सुरक्षा मानदंडों की खुलेआम अनदेखी करती हैं. मोटी कमाई के लालच में बिल्डर न सिर्फ भूकंप-रोधी मानदंडों को नजरअंदाज करते हैं, बल्कि अन्य सुरक्षा तैयारियों को लेकर भी बेपरवाह होते हैं.
लाखों नागरिको की जान जोखिम में डालनेवाले इस आपराधिक कृत्य में अधिकारी और राजनेता बराबर के शरीक हैं. जरूरी है कि बहुमंजिली इमारतों की कड़ाई से जांच की जाये और सुरक्षा मानदंडों की अनदेखी करनेवालों पर ठोस कार्रवाई हो.

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