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बिजली उत्पादन पर ढीला सरकारी रवैया
झारखंड को अपनी जरूरत की दो तिहाई ही बिजली मिल पाती है. जिस राज्य का यह हाल हो, उस राज्य में रिलायंस पावर के अल्ट्रा मेगा प्रोजेक्ट लिए जमीन उपलब्ध नहीं हो सकी. ऐसे में यह सरकार अपने शून्य बिजली कटौती के लक्ष्य को भेद ले, यह बेहद मुश्किल लग रहा है. पीपीपी मोड में […]
झारखंड को अपनी जरूरत की दो तिहाई ही बिजली मिल पाती है. जिस राज्य का यह हाल हो, उस राज्य में रिलायंस पावर के अल्ट्रा मेगा प्रोजेक्ट लिए जमीन उपलब्ध नहीं हो सकी.
ऐसे में यह सरकार अपने शून्य बिजली कटौती के लक्ष्य को भेद ले, यह बेहद मुश्किल लग रहा है. पीपीपी मोड में बरही-कोडरमा के बीच स्थापित होनेवाली 36 हजार करोड़ रुपये की इस बिजली परियोजना के लिए सबसे बड़ी अड़चन भूमि की उपलब्धता रही.
विचित्र यह है कि केंद्र सरकार द्वारा नवंबर 2010 में दूसरे चरण की मंजूरी देने के बावजूद प्रदेश सरकार वन भूमि सौंपे जाने की दिशा में कोई पहल नहीं कर पायी, सिवाय इसके कि पांच साल में 25 से अधिक समीक्षा बैठकें हुईं. भूमि अधिग्रहण अध्यादेश पर अभी जमीन-आसमान एक कर देनेवाली कांग्रेस, न अब केंद्र में है, न राज्य की सरकार में.
अब दोनों जगह भाजपा है, पर बहुत अलग सूरत नहीं लगती. अध्यादेश को लेकर तूफान खड़ा करनेवाली राजनीतिक पार्टियां कभी राज्य हित को लेकर भी ऐसा करतीं, तो यह एक नजीर होती. ऐसे में भूमि अधिग्रहण मसले पर दल हित से हट कर गंभीरता से सोचने की जरूरत है.
घोर बिजली संकट से गुजर रहे प्रदेश में बिजली कोई प्राथमिकता होती, तो प्रदेश की औद्योगिक सेहत यह नहीं होती. मौजूदा सरकार के कार्यकाल में रिलायंस का प्रदेश से रूठ कर विदा होने का मतलब सिर्फ एक महत्वाकांक्षी ऊर्जा संयंत्र का राज्य से चला जाना नहीं है. इससे पूर्व अभिजीत ग्रुप बैंक कर्ज से लद जाने के कारण शुरू होने से पहले ही अपनी परियोजना समेट कर विदा हो चुका है. कोयला ब्लॉक घोटाले में उलझ जाने के कारण एस्सार पावर के लिए चंदवा का प्लांट पूरा करना मुश्किल हो रहा है.
आधुनिक पावर प्लांट के 500 मेगावाट की इकाई तथा एमपीएल की दो इकाइयों को छोड़ दें, तो कमोबेश झारखंड में लगनेवाले या लगने जा रहे प्लांटों की यही सूरत है. यह हाल तब है जब प्रदेश के मुखिया खुद ही बिजली विभाग देखते हैं.
ऐसे में बड़े बिजली संकट के मुहाने पर खड़े झारखंड में बिजली संयंत्रों के प्रति राज्य के सरोकार को लेकर बहुत अच्छा संदेश नहीं जा सकता. इसके बृहत्तर आशय की गंभीरता को समय रहते नहीं समझा गया, तो स्थितियां और भी नकारात्मक हो सकती हैं.
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