अफगान राष्ट्रपति का सहयोगी रुख

हाल के दशकों में अफगानिस्तान की छवि तालिबानी आतंकवाद से लहूलुहान रणभूमि के रूप में रही है. इस दौरान उसे एक ‘फेल्ड स्टेट’ के रूप में देखा गया है. लेकिन अब वह नवनिर्माण की राह पर है और इस कारण रूस, चीन, पाकिस्तान के साथ-साथ भारत के लिए भी व्यापारिक संभावनाओं की एक नयी भूमि […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 30, 2015 2:19 AM
हाल के दशकों में अफगानिस्तान की छवि तालिबानी आतंकवाद से लहूलुहान रणभूमि के रूप में रही है. इस दौरान उसे एक ‘फेल्ड स्टेट’ के रूप में देखा गया है. लेकिन अब वह नवनिर्माण की राह पर है और इस कारण रूस, चीन, पाकिस्तान के साथ-साथ भारत के लिए भी व्यापारिक संभावनाओं की एक नयी भूमि है.
उसकी बड़ी चिंता अपने को एक लोकतांत्रिक देश के रूप में गढ़ने और पड़ोसी देशों से मैत्रीपूर्ण संबंध बहाल करने की है. आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक युद्ध का मुहावरा गढ़े जाने के बाद अफगानिस्तान को लगातार यह संकेत देना पड़ता है कि वह इस युद्ध को न सिर्फ जीत रहा है, बल्कि तालिबानी ताकतों पर उसका नियंत्रण मजबूत हो रहा है.
चाहे वह पाकिस्तान में सेना के स्कूल पर हुआ हमला हो या फिर आइएसआइ की शह पर कश्मीर में तालिबानी आतंकियों की घुसपैठ, भारत और पाक दोनों ही अफगानिस्तान से कैफियत तलब करते रहते हैं. ऐसे में अशरफ गनी का यह कहना कि अफगानिस्तान आतंकवाद को जड़ से खत्म करने के लिए कटिबद्ध है और इसके लिए क्षेत्रीय सहयोग की पहलकदमी को समर्थन दे सकता है, भारत के लिए आश्वस्तकारी माना जायेगा.
यह दक्षिण एशिया में शांति और समृद्धि का वातावरण तैयार करने की नरेंद्र मोदी की पहलकदमी का एक तरह से समर्थन है. गनी राष्ट्रपति निर्वाचित होने के महीनों बाद भारत आये, इससे पहले चीन तथा पाकिस्तान से नजदीकी कायम करने में लगे थे, यह बात भारत को चिंतित कर रही थी. गनी के बयान से भारत की चिंता दूर हुई है.
मोदी की प्राथमिकता के अनुरूप ही गनी ने अफगानिस्तान में तीन ट्रिलियन डॉलर की प्राकृतिक संपदा के दोहन की संभावनाओं की तरफ ध्यान दिलाया है. भारत के लिए इस मोर्चे पर बहुत अवसर हैं, खास कर यह देखते हुए कि भारत ने अफगानिस्तान की विविध परियोजनाओं में 2 अरब डॉलर का निवेश किया है, जिसे बढ़ाया जा सकता है.
अगर अफगानिस्तान को ईरान का बंदरगाह सुलभ होने में भारत मददगार साबित होता है तो दक्षिण-पश्चिम एशिया के देशों के बीच अफगानिस्तान एक बड़ा व्यापारिक केंद्र बन सकता है. प्रधानमंत्री मोदी ने इस तरफ इशारा किया है. अगर आनेवाले वक्त में ऐसा हो पाता है तो यह भारत के व्यापारिक हित में होगा.

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