हमारे देश में बेटे के मोह में हर साल लाखों बच्चियों की दुनिया में आने से पहले ही हत्या कर दी जाती है. लड़कियों की यह अवहेलना व तिरस्कार चिंताजनक और अमानवीय है.
जिस देश में स्त्री की सेवा, त्याग और ममता की दुहाई दी जाती हो, उसी देश में एक कन्या के आगमन पर पूरे परिवार में मायूसी और शोक छा जाना विडंबना है.
लगातार घटता स्त्री-पुरुष अनुपात समाजशास्त्रियों, जनसंख्या विशेषज्ञों और योजनाकारों के लिए चिंता का विषय बन गया है. यूनिसेफ के अनुसार दस प्रतिशत महिलाएं विश्व जनसंख्या से लुप्त हो चुकी हैं. स्त्रियों के इस विलोपन के पीछे कन्या भ्रूण हत्या ही मुख्य कारण है.
अक्सर लोग बेटे को बुढ़ापे का सहारा और बेटी को बोझ समझते हैं. बड़े शहरों के कुछ पढ़े-लिखे परिवारों में यह सोच थोड़ी बदली है, लेकिन गांव-देहात और छोटे शहरों में आज भी बेटियों को लेकर पुराना रवैया कायम है.
मदर टेरेसा ने कहा था, ‘‘हम ममता के तोहफे को मिटा नहीं सकते. स्त्री और पुरुष के बीच कुदरती समानता खत्म करने के लिए हिंसक हथकंडे अपनाने से समाज पराभव की ओर बढ़ता है.’’
नारी मानव शरीर की निर्माता है, फिर भी उसी की अवहेलना की जा रही है! नर और नारी मानव रूपी रथ के दो पहिये हैं जिनके बिना यह रथ आगे नहीं बढ़ सकता. महर्षि दयानंद ने कहा था कि जब तक देश में स्त्रियां सुरक्षित नहीं होंगी और उन्हें उनके गौरवपूर्ण स्थान पर प्रतिष्ठित नहीं किया जायेगा, तब तक समाज, परिवार और राष्ट्र का निर्माण नहीं हो सकेगा. वेदों में नारी के प्रति बहुत उदात्त भावनाएं दर्शायी गयी हैं.
आज नारी विभिन्न क्षेत्रों में सकारात्मक योगदान कर रही है. वह आत्मनिर्भर होकर अपने परिवार और देश का हित करने में संलग्न है. ऐसे में नारी की अवहेलना से सबका अहित होगा.
मनोरथ सेन, ई-मेल से