दुआ है कि ना टूटें इन बच्चों के सपने
शिकोह अलबदर प्रभात खबर, रांची परसों सुबह ऑफिस की कैंटीन में खुदीराम से मेरी बात हो रही थी. उन्होंने बताया कि वे दसवीं की परीक्षा में द्वितीय श्रेणी से पास हो गये हैं. कुछ अंकों के लिए प्रथम श्रेणी नहीं मिल सकी, जिसका उन्हें मलाल भी है.फिर भी, उनके दसवीं पास होने के इस समाचार […]
शिकोह अलबदर
प्रभात खबर, रांची
परसों सुबह ऑफिस की कैंटीन में खुदीराम से मेरी बात हो रही थी. उन्होंने बताया कि वे दसवीं की परीक्षा में द्वितीय श्रेणी से पास हो गये हैं. कुछ अंकों के लिए प्रथम श्रेणी नहीं मिल सकी, जिसका उन्हें मलाल भी है.फिर भी, उनके दसवीं पास होने के इस समाचार से मुङो सुखद अनुभूति हुई थी. मन में एक संतुष्टि का भाव था कि इस बच्चे की मेहनत रंग लायी. खुदीराम से मेरी पहली मुलाकात लगभग एक महीने पहले ऑफिस की कैंटीन में हुई थी.
उस समय जब कैंटीन पहुंचा तो खुदीराम ने तेजी से पानी का ग्लास और चाय बढ़ाया था. सौम्य और हमेशा मुस्कुराते रहने वाले उस तेरह-चौदह वर्षीय लड़के ने उस समय खाकी रंग की पैंट पहन रखी थी. उसे देखते ही मुङो इस बात का एहसास हुआ था कि संभवत: वह स्कूली छात्र रहे हैं सो मैंने अपनी इस जिज्ञासा को शांत करने के लिए सवाल किया था : पढ़ते हो?
मुस्कुराते हुए धीमी आवाज में जवाब मिला : जी. बातों के दौरान यह मालूम चला कि उन्होंने अपने गांव के नजदीक के ही एक सरकारी स्कूल से पढ़ाई की है. इस बार मैट्रिक की परीक्षा दी है. मैंने खुदीराम के प्रतिभा को थोड़ा परखना चाहा था.
मैंने उनसे गणित का एक सवाल पूछा : बताओ, ए प्लस बी का होल स्कवायर का फॉमरूला? तेजी से जवाब मिला : ए स्कवायर प्लस टू एबी प्लस बी स्वायर. तब उन्होंने बताया कि उनकी गणित अच्छी है. इंगलिश और विज्ञान विषयों में वे कमजोर हैं. विज्ञान विषय ठीक है, लेकिन इंगलिश में और अधिक मेहनत करना चाहते है-खुदीराम ने अपनी इच्छा जतायी थी. पूछे जाने पर कि आगे क्या करने का इरादा है, तो उनका जवाब था कि वो आगे की पढ़ाई जारी रखना चाहते हैं.
इस औपचारिक मुलाकात के बाद खुदीराम से मेरी मुलाकात हमेशा होती रहती है, कभी चाय देने वे हमारे पास आते हैं तो कभी चाय पीने हम उनके पास चले जाते हैं. खुदीराम का परिवार गरीब परिवार है जिसे दो जून की रोटी के लिए काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.
उनका घर शहर से लगभग चालीस किलोमीटर दूर एक सुदूरवर्ती गांव है,. वे परिवार से दूर यहीं कैंटीन में रहते हैं और अपनी जीविका चला रहे हैं. मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद उनकी आंखों में एक नयी चमक दिखती है.
उनकी आंखों में नये सपने फिर जगे हैं. वो भविष्य में बेहतर करना चाहते हैं. लेकिन हमें मालूम हैकि भारत में उनके जैसे हजारों-लाखों प्रतिभावान बच्चे हैं और घर की जरूरतों को पूरा करने और चंद रुपयों की खातिर ये बच्चे तमाम उम्र लगा देते हैं. उनकी प्रतिभा का सही दिशा में दोहन नहीं हो पाता है.
कई बच्चे जीवन से हताश-निराश होकर अपनी प्रतिभा को गलत दिशा में खर्च कर देते हैं. खुदीराम जैसे उन हजारों-लाखों गरीब परिवार के बच्चों ने भी कई सपने संजोये रखे हैं,जीवन में आगे बढ़ने की उनकी भी चाहत है. उनके भविष्य संजोने की चिंता हम सभी को अवश्य होनी चाहिए. दुआ है कि इन बच्चों के सपने टूटने ना पायें.