रिलायंस पावर ने दो दिनों पहले घोषणा की थी कि राज्य सरकार जमीन उपलब्ध नहीं करा पायी, इस कारण वह तिलैया अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट के लिए हुए समझौते से हट रही है.दूसरे दिन ही राज्य सरकार ने साफ किया कि रिलायंस के आरोप गलत हैं.
खुद रिलायंस ने इस प्रोजेक्ट में रुचि लेनी बंद कर दी थी. यह कोई छोटा प्रोजेक्ट नहीं था. इसमें 36 हजार करोड़ रुपये का निवेश होनेवाला था. इससे राज्य को 1.77 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली मिलती. यह सही है कि झारखंड में जमीन के अभाव में अनेक प्रोजेक्ट लंबित हैं.
लेकिन यहां यह भी देखना होगा कि क्या सचमुच रिलायंस गंभीर नहीं थी? मुख्य सचिव ने जो बात कही थी, उसके अनुसार जमीन अधिग्रहण के लिए जो जन सुनवाई हुई थी, उसमें भी कंपनी की ओर से कोई नहीं था. अगर यह बात सही है तो यह गंभीर मामला है. जमीन का बड़ा हिस्सा वन विभाग से जुड़ा है. अगर फॉरेस्ट क्लियरेंस के लिए कंपनी की ओर से गंभीर प्रयास नहीं किया गया, तो इसके पीछे के कारणों को भी जानना होगा.
क्यों रिलायंस ने पहल नहीं की? इसमें उसकी रुचि क्यों कम हो गयी? क्या इसके लिए बिजली दर का कम होना एक कारण तो नहीं है? संभव हो कि प्रोजेक्ट में विलंब के कारण कंपनी इस दर को बढ़वाने के मूड में हो. मुख्य सचिव की बात से यह साफ होता है कि सिर्फ राज्य सरकार पर ठीकरा फोड़ना उचित नहीं है. अब विकल्प तलाशना होगा. समय की यही मांग है.
झारखंड के लिए खुशी की बात यह है कि इस प्रोजेक्ट को अगर रिलायंस ने छोड़ा है तो इसे लेने के मूड में एनटीपीसी है. अगर सच में एनटीपीसी तैयार है, तो तेजी से इस काम को आगे बढ़ाना होगा. जमीन अधिग्रहण के लिए गंभीरता से प्रयास करना होगा. अगर एनटीपीसी अपने हाथ में यह प्रोजेक्ट ले लेती है, उसे समय पर जमीन मिल जाती है, और बिजली उत्पादन आरंभ हो जाता है तो इससे झारखंड को फायदा होगा.
यह तभी हो पायेगा जब सरकार प्राथमिकता के आधार पर इसे ले और हर हाल में इस काम को समय पर पूरा करे. एनटीपीसी सरकारी प्रतिष्ठान है, झारखंड में पहले से काम कर रहा है, इसलिए उसे विश्वास में लेना राज्य सरकार के लिए आसान होगा.