अफवाहों को पंख और राहत की सौदागरी
उर्मिलेश वरिष्ठ पत्रकार कई बार अफवाहें भी बेहद खतरनाक हो जाती हैं. जिन तत्वों ने अफवाहों को पंख दिये, उनकी मंशा की गहराई से शिनाख्त की जानी चाहिए. इस तरह के खतरनाक मंसूबे हमारे जैसे विकासशील देश, समाज और सभ्यता के लिए कभी भी बड़ा खतरा बन सकते हैं. सन् 1947 के 14-15 अगस्त की […]
उर्मिलेश
वरिष्ठ पत्रकार
कई बार अफवाहें भी बेहद खतरनाक हो जाती हैं. जिन तत्वों ने अफवाहों को पंख दिये, उनकी मंशा की गहराई से शिनाख्त की जानी चाहिए. इस तरह के खतरनाक मंसूबे हमारे जैसे विकासशील देश, समाज और सभ्यता के लिए कभी भी बड़ा खतरा बन सकते हैं.
सन् 1947 के 14-15 अगस्त की रात हमारे इतिहास का सर्वथा नया अध्याय लिख रही थी. भारत आजाद हो रहा था, लेकिन आजादी की लड़ाई के महानायक महात्मा गांधी तब आजादी की खुशियां मनाने दिल्ली में नहीं थे.
प्रधानमंत्री बनने जा रहे पंडित नेहरू, सरदार पटेल और अन्य शीर्ष कांग्रेसी नेताओं के साथ वह दिल्ली में नहीं, पूर्वी बंगाल के नोआखाली में थे, जहां फिर दंगे भड़क उठे थे. मार-काट मची थी. अफवाहों का बाजार गर्म था. ‘वन-मैन-आर्मी’ बन गांधी उस पागलपन पर अंकुश लगाने में जुटे थे. चमक-दमक और प्रचार से बहुत दूर, नोआखाली की बस्तियों में जाकर लोगों को समझा-बुझा रहे थे.
लोगों के दिलोदिमाग में धधकती हिंसा की ज्वाला शांत कर रहे थे. इसे उन्होंने अपना मकसद माना. वह नि:स्वार्थ भाव से जुटे रहे और अंतत: कामयाब हुए. लेकिन, यह कैसी विडंबना है, गांधी के देश में इन दिनों राहत और बचाव के काम भी सियासी स्वार्थ से प्रेरित होकर किये जा रहे हैं. भूकंप के बाद राहत-बचाव के लिए अपनी पीठ थपथपायी जा रही है और अपने राजनीतिक प्रतिस्पर्धियों या नापसंद लोगों की ‘निष्क्रियता के लिए’ उन्हें कोसा जा रहा है. सार्वजनिक बयानों में ही नहीं, सोशल मीडिया के जरिये भी श्रेय लेने की होड़ सी मची है!
भूकंप से नेपाल में भीषण तबाही के साथ अपने देश के बिहार-यूपी आदि के कई इलाकों में भी जन-धन की भारी क्षति हुई है. सेना, कई सरकारी और गैर-सरकारी एजेंसियों ने ऐसे इलाकों में राहत और बचाव के कारगर कदम उठाये हैं, लेकिन जिस बड़े पैमाने पर बरबादी हुई है, जितनी बड़ी यह त्रसदी है, उसके मुकाबले बचाव-राहत के बड़े से बड़े उपक्रम भी कमतर मालूम होते हैं.
ऐसे में सदाशयता, विनम्रता, विचारों की पवित्रता और मनुष्यता के बड़े सरोकार जरूरी हैं. आत्मप्रशंसा और परनिंदा से बचने की जरूरत है. पिछले दिनों, सोशल मीडिया के जरिये एक विचित्र पोस्टर प्रसारित किया गया. यह उद्धृत करने लायक नहीं हैं, पर जहरीले विचार किस हद तक निम्नस्तरीय हो सकते हैं, इस पोस्टर से समझा जा सकता है.
इसमें एक तरफ कहा गया है कि अमुक बाबा ने राहत के लिए 51 लाख दिये हैं, अमुक योगाचार्य अपनी पूरी टीम के साथ नेपाल में जुटे हैं, एक शीर्ष नेता के नामोल्लेख के साथ कहा गया कि उन्होंने ‘यह किया, वह किया’, कुछेक भगवा पार्टियों के भी अच्छे कामों की तारीफ में कसीदे कढ़े गये हैं, फिर पूछा गया है- ‘पर कहां है वह पाकिस्तानी’ (एक बालीवुड स्टार का नाम), कहां है सत्यमेव जयते वाला (एक अन्य स्टार का नाम), कहां है अमुक पार्टी का नेता, कहां हैं भारत के सेक्युलर?’ सत्तारूढ़ दल के एक चर्चित नेता को तो यह कहते पाया गया कि इस तरह का भीषण भूकंप इसलिए आया, क्योंकि ‘राहुल गांधी ने अपवित्र ढंग से केदारनाथ धाम की यात्र कर डाली!’
इस दौरान सोशल मीडिया ही नहीं, मुख्यधारा मीडिया के एक हिस्से (जिसमें कुछेक चैनल और कुछ अखबार भी हैं) ने बेसिर-पैर वाली अफवाहों को पंख दिये. सोशल मीडिया में ‘नासा’ जैसी जानी-मानी अमेरिकी वैज्ञानिक संस्था को भी गलत ढंग से सामने लाने की कोशिश की गयी. एक पोस्ट में भूकंप संबंधी अफवाह फैलाने के लिए ‘नासा’ तक को उद्धृत करने की धृष्टता की गयी.
भारतीय विज्ञान संस्थानों को भी जैसे चाहे वैसे उद्धृत कर लिया गया. 25 से 27 अप्रैल के बीच अफवाहबाजों ने यहां तक बता दिया कि बहुत जल्द रिक्टर स्केल पर 8.6 या 13.6 की तीव्रता वाला भूकंप आयेगा. इसकी जद में बिहार, यूपी और छत्तीसगढ़ के इलाके आयेंगे. बिहार में ऐसे अफवाहबाजों की सक्रियता ज्यादा दिखी.
इसकी क्या वजह है, इस बारे में तरह-तरह के कयास लगाये जा रहे हैं. बताते हैं कि 25 और 26 अप्रैल को विभाग के नियंत्रण कक्ष में लगे दस-दस फोनलाइनों पर आनेवाले ज्यादातर संदेश या सवाल इस बात से जुड़े थे कि अमुक दिन आनेवाले भूकंप के झटके क्या 8.6 या 13.6 तीव्रतावाले होंगे!
बिहार सरकार के राहत-पुनर्वास और आपदा-प्रबंधन विभाग के अफसरों-कर्मियों ने जिस तत्परता और कड़ाई से अफवाहबाजों के घृणित अभियान को जल्दी ही नियंत्रित किया और अफवाहबाजों के जाने-अनजाने मंसूबों को विफल किया, उसके लिए विभाग का साधुवाद किया जाना चाहिए. इसमें वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों का भी कम योगदान नहीं रहा.
विभिन्न चैनलों, अखबारों व ऑनलाइन माध्यमों के जरिये उन्होंने बार-बार साफ किया कि भूकंप की तीव्रता या इलाके की सही-सही भविष्यवाणी करना वैज्ञानिक तौर पर अभी मुमकिन नहीं हो सका है. फिर सोशल मीडिया या मुख्यधारा मीडिया के एक हिस्से में ऐसी ‘भविष्यवाणियां’ कहां से और किन लोगों द्वारा की जा रही थीं?
बताते हैं कि ऐसी अफवाहें या ‘भविष्यवाणियां’ सबसे अधिक उत्तर बिहार और छत्तीसगढ़ के कुछेक इलाकों से सोशल मीडिया के एक खास प्लेटफार्म के जरिये प्रसारित हुईं. बिहार में ऐसे कुछ अफवाहबाजों को चिह्न्ति कर उनके खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज हुई है. इसमें एक पूर्व विधायक का नाम भी सामने आ रहा है.
इस दौरान पटना, दरंभगा, गया, लखनऊ, फैजाबाद, कोलकाता, चेन्नई और मुंबई जैसे शहरों में भी तरह-तरह की अफवाहें उड़ायी गयीं. बिहार में भूकंप के बाद पानी के जहरीला हो जाने जैसी बेतुकी अफवाह तक उड़ायी गयी. भूकंप के प्रभाव से ‘चांद का मुंह टेढ़ा होने’ या ‘नदियों के पानी में भारी बढ़ोत्तरी’ यानी बाढ़ आने की भी अफवाह उड़ायी गयी.
अच्छी बात है कि सोशल मीडिया में ऐसी अफवाहों के खिलाफ बहुत सारे नौजवानों ने अभियान भी चलाये, ताकि आम लोगों को जागरूक किया जा सके और लोग किसी तरह के अफवाह-तंत्र का शिकार न हो सकें. अच्छी बात है कि केंद्र और राज्यों के प्रशासन की तरफ से भी अफवाहों के खिलाफ सजग रहने का लोगों से आह्वान किया गया.
प्राकृतिक विपदाएं हों, मानव-रचित विध्वंश हों या अन्य बड़ी त्रसदियां हों, वे अपार नुकसान के अलावा अपने साथ मनुष्यता पर कई तरह के खतरे और अंदेशे लेकर आती हैं. त्रसदियां एक झटके में आती हैं और चली जाती हैं, पर ये खतरे और अंदेशे मनुष्यता पर मंडराते रहते हैं.
नागरिक समाज ने इसका एहसास नागासाकी-हिरोशिमा, चेरनोबिल से लेकर भोपाल तक में किया है. कई बार अफवाहें भी बेहद खतरनाक हो जाती हैं. ऐसे में इस बार के विनाशकारी भूकंप के तत्काल बाद बिहार सहित देश के कुछेक हिस्सों में तेजी से प्रचारित-प्रसारित अफवाहों को यूं ही नहीं लिया जाना चाहिए.
संभव है, कुछ लोगों ने अनजाने ही सोशल मीडिया के जरिये मिले अफवाह-भरे संदेशों को आगे प्रसारित कर दिया हो, लेकिन इस पूरे अभियान में जिन तत्वों ने अफवाहों को पंख दिये, उनकी मंशा और मंसूबों की गहराई से शिनाख्त की जानी चाहिए. इस तरह के खतरनाक मंसूबे हमारे जैसे विकासशील देश, समाज और सभ्यता के लिए कभी भी बड़ा खतरा बन सकते हैं.