झारखंड हाइकोर्ट ने राज्य में गैर-बैंकिंग कंपनियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने के लिए झारखंड सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाये हैं. अदालत ने तल्ख होकर पूछा है कि क्या सरकार गरीबों का लगभग एक हजार करोड़ रुपये डूबने का इंतजार कर रही है. राज्य में सैंकड़ों गैर-बैंकिंग कंपनियां अब भी सक्रिय हैं. ये कंपनियां लुभावने वादे कर गरीबों से उनकी गाढ़ी कमाई जमा करवा रही हैं.
ये अवैध तौर पर राज्य में काम कर रही हैं. इनके पास धन जमा करने के लिए न तो केंद्रीय बैंक (भारतीय रिजर्व बैंक) से कोई अनुमति है और न ही राज्य सरकार को इनके संचालित होने की विधिवत जानकारी दी गयी है. संताल परगना से लेकर कोल्हान में सक्रिय अधिकांश गैर-बैंकिंग कंपनियों का पंजीकृत कार्यालय पश्चिम बंगाल में है. ये कंपनियां अस्थायी दफ्तर खोल कर और बेरोजगार युवकों को मोटी तनख्वाह व कमीशन का लालच देकर गरीब और कम पढ़े-लिखे लोगों को जाल में फांसने के लिए उतार देती हैं. करीब छह महीने पहले संताल परगना में गैर-बैंकिंग कंपनियों के इस जाल की जिला प्रशासन ने गहन छानबीन की. लगभग तीन दर्जन कंपनियों के बारे में ठोस सुबूत मिले. जांच रिपोर्ट भी दाखिल हुई, पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी.
इसी तरह धनबाद और जमशेदपुर में भी पुलिस ने एफआइआर तो की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की. बिहार में भी गैर-बैंकिंग कंपनियां सक्रिय हैं, लेकिन वहां सरकार ने इनके विनियमन (रेगुलेशन) के लिए नया कानून बनाया है जो अगस्त से लागू हो गया है. ऐसे प्रयास झारखंड को भी करने चाहिए. राज्य सरकार की यह जिम्मेवारी बनती है कि गरीबों की गाढ़ी कमाई लुटने से बचाये. संविधान के मुताबिक, राज्यों को वित्तीय अनुशासन संबंधी कानून बनाने के अधिकार हैं जिसका प्रयोग बिहार ने किया है. झारखंड सरकार को राज्य में चलनेवाली नन बैंकिंग कंपनियों को सही तरीके से संचालित करने के कानून बनाने के साथ ही इसमें पैसा जमा करनेवाले लोगों को भी सुरक्षित निवेश के संबंध में बताना चाहिए. सेबी जैसी संस्था इस तरह का प्रयास करती है. अब रिजर्व बैंक ने पैसा जमा करनेवालों को शिक्षित व जागरूक करने का काम शुरू किया है. आज के समय में यह बहुत जरूरी है.