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राज्यों को विश्वास में लेकर हो संशोधन

सरकारों और अधिकारियों के परस्पर संबंध प्रशासनिक सेवाओं में सुधार की बहसों का मुख्य बिंदु रहे हैं. एक महत्वपूर्ण पहल करते हुए केंद्र सरकार ने अखिल भारतीय सेवाओं में अनुशासन एवं अपील के नियमों को संशोधित करने का प्रारूप तैयार किया है. इस संशोधन में भारतीय प्रशासनिक सेवा, पुलिस सेवा और वन सेवा के अधिकारियों […]

सरकारों और अधिकारियों के परस्पर संबंध प्रशासनिक सेवाओं में सुधार की बहसों का मुख्य बिंदु रहे हैं. एक महत्वपूर्ण पहल करते हुए केंद्र सरकार ने अखिल भारतीय सेवाओं में अनुशासन एवं अपील के नियमों को संशोधित करने का प्रारूप तैयार किया है. इस संशोधन में भारतीय प्रशासनिक सेवा, पुलिस सेवा और वन सेवा के अधिकारियों के निलंबन के राज्य सरकार के अधिकारों में बदलाव के प्रस्ताव हैं.

राज्य सरकारों द्वारा अधिकारियों के मनमाने निलंबन और स्थानांतरण के मामले विवाद का विषय बनते रहते हैं. अधिकारियों और उनके संगठनों की ऐसी अनेक शिकायतें भारत सरकार के कार्मिक मंत्रलय के पास भी लंबित हैं. प्रस्तावित संशोधनों के अनुसार, राज्य सरकारों को अखिल भारतीय सेवा के किसी अधिकारी को सात दिन से अधिक समय तक निलंबित रखने के लिए केंद्रीय समीक्षा समिति से अनुमति लेनी होगी.

सेवा से संबंधित मंत्रलय, यानी कि प्रशासनिक सेवा के लिए कार्मिक मंत्रलय, पुलिस सेवा के लिए गृह मंत्रलय और वन सेवा के लिए वन मंत्रलय के सचिव इस समिति की अगुवाई करेंगे. राज्य स्तर पर इसके प्रमुख, मुख्य सचिव होंगे. नियमों के लागू होने के बाद राज्य सरकारों को निलंबन की सूचना 48 घंटे के भीतर केंद्रीय समिति को देनी होगी. इसके अलावा, निलंबन के आदेश पर 30 दिनों के भीतर केंद्र से संस्तुति लेनी होगी. अभी यह अवधि 45 दिन की है. प्रशासन, कानून-व्यवस्था और वन संपदा सामान्यत: राज्य के अधिकार-क्षेत्र में हैं और इनसे संबंधित मामलों की जवाबदेही भी उसी की होती है. संशोधनों से ऐसा कोई संकेत नहीं जाना चाहिए कि केंद्र सरकार राज्यों के अधिकारों में बेजा दखल देने की कोशिश कर रही है. ताजा आंकड़ों के मुताबिक, अभी देश में अखिल भारतीय सेवा के 4,802 प्रशासनिक अधिकारी, 3,798 पुलिस अधिकारी और 2,668 वन अधिकारी कार्यरत हैं, जबकि पदों की स्वीकृत संख्या क्र मश: 6,375; 4,728 और 3,131 है. इस तरह इन अधिकारियों पर भी काफी बोझ है. सरकारें और अधिकारी समुचित तालमेल के साथ ही अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर सकते हैं. प्रस्तावित संशोधनों को इसी दृष्टिकोण के साथ अंतिम रूप दिया जाना चाहिए.

वाह रे लड़कियों के उद्धारक!
‘‘कुछ मत पूछो मिश्र, बस इतना जान लो कि लड़की का उद्धार कर दिया. आप तो जानते ही हो कि दहेज लेने के सख्त खिलाफ रहे हैं हमलोग, हमेशा से. अच्छे खानदान की पढ़ी-लिखी लड़की, यहां आकर शहरी सोसाइटी का चाल-ढाल सीख जायेगी.’’- बड़े बेटे की शादी का कार्ड लेकर शर्मा जी अपने पड़ोसी मिठेश्वर मिश्र के यहां अलसुबह पहुंचे ही थे. पान की पीक बाहर गमले के बगल में थूकी और अंदर बेसिन में कुल्ला कर मुंह साफ कर लिया. चाय बहुत पसंद है उन्हें, खास कर पड़ोसियों के यहां की. अरे ओ मिठौती!- आवाज लगायी और आते ही कार्ड पकड़ाते हुए कहा, ‘‘समधी मिलान के लिए तैयार रहना मिठौती, पांच दिन बाद बेटे की शादी है.’’ शादी?- मिश्र जी के पूछते ही उनका भाषण शुरू हो गया. एक भी लाइन इधर-उधर नहीं, सेम टू सेम वही भाषण, जो चार पड़ोसियों को सुना कर आये थे. सोसाइटी में विभिन्न मुद्दों पर आयोजित सेमिनारों में उन्हें बोलने में वैसे महारत हासिल थी. अभी पिछले हफ्ते ही नारी सशक्तीकरण व दहेज प्रथा पर आठ मिनट तक धारा प्रवाह भाषण दिया था उन्होंने. खैर! बात पूरी नहीं हुई थी उनकी. चाय की फरमाइश की और सोफे पर पालथी मार बैठ गये और शुरू कर दिया बखान- ‘‘राजीव (मंझला बेटा) डॉक्टर है, अमित (छोटा बेटा) भी रिलायंस में इंजीनियर हो गया. बड़े के बिजनेस से कोई लेना-देना नहीं. लड़की राज ही तो करेगी.’’
किचन से चाय लेकर आयी मिसेज मिश्र ने तपाक से पूछ ही डाला- ‘‘भाई साब, दहेज न सही, गहने-जेवर, सामान तो दे ही रहे होंगे न, लड़की वाले. कोई यूं ही खाली हाथ तो थोड़े न बेटी विदा करता है. ’’ मिसेज मिश्र के सवाल में अभी प्रश्नवाचक चिह्न् तक नहीं लगा था कि शर्मा जी बोल पड़े, ‘‘देखिये भाभी जी, अब आप लोगों से क्या छिपाना. बेटे ने नया मकान बनवाया है. बस हमने कह दिया, बेटी को कोई दिक्कत न हो, सो पलंग-गद्दा, फ्रीज, कूलर, एसी, होम एप्लायंस वगैरह, जो बन पड़े, दे दें. बेटे को तो बस एक चरपहिया का शौक था, सो लड़की वालों ने उसका दिल रख लिया. अपनी बिटिया की शादी में हमने भी इतना किया ही था.’’
‘‘क्या भाई साब, अब ये कम है क्या कि बिजनेसमैन बेटे के लिए सर्विस वाली बहू मिली है.’’- मिश्र जी बोल पड़े- ‘सुना है, गांव में 12 बीघा खेत भी है और दो आम के बगान भी. आखिर मां-बाप के बाद सब कुछ इकलौती बेटी का ही तो हो जायेगा?’’ शर्मा जी कुछ जवाब सोच ही रहे थे कि कमरे के अंदर बैंक इंटरव्यू की तैयारी कर रही मिश्र जी की बेटी (इस बातचीत ने जिसका कंसन्ट्रेशन भंग कर डाला था) बाहर निकल आयी, और कथित संस्कार का परित्याग कर बड़ों के बीच बस इतना बोल पड़ी- ‘‘अंकल! प्लीज आप लोग लड़कियों का उद्धार करना बंद कर दीजिए.’’
निलेश कुमार भगत
प्रभात खबर, भागलपुर
nbhagat399@gmail.com

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