हर चीज की बात, बस पढ़ाई की नहीं

आज हम सभी गरीब और ग्रामीण अभिभावक अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में अच्छी तालीम दिलाना चाहते हैं, लेकिन सरकार की नीतियों से ऐसा कहीं से भी नहीं लगता कि उसकी इच्छा इन बच्चों को पढ़ाने की है. अभी पिछले कुछ दिनों से सरकार ‘प्रयास’ कार्यक्रम के तहत छह से 14 वर्ष तक के बच्चों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 4, 2015 7:14 AM

आज हम सभी गरीब और ग्रामीण अभिभावक अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में अच्छी तालीम दिलाना चाहते हैं, लेकिन सरकार की नीतियों से ऐसा कहीं से भी नहीं लगता कि उसकी इच्छा इन बच्चों को पढ़ाने की है. अभी पिछले कुछ दिनों से सरकार ‘प्रयास’ कार्यक्रम के तहत छह से 14 वर्ष तक के बच्चों को स्कूल से जोड़ने का अभियान चला रही है. इस वजह से भरी गरमी में भी स्कूल का समय सुबह 10 बजे से शाम चार बजे तक कर दिया गया है. गरम दुपहरी में जहां जानवर भी घर से बाहर नहीं निकलना चाहता, वहां इन नौनिहालों को मैदान में दौड़ाया जा रहा है.

इन चंद दिनों के कार्यक्रम में सरकार ने काफी सारे कर्तव्यों की सूची बना कर स्कूलों को भेज दी है. इसमें विशेष भोजन दिवस, साफ-सफाई दिवस और प्रभात फेरी आदि को शामिल किया गया है, लेकिन इस सूची में एक भी ऐसा बिंदु नहीं है, जिसमें बच्चों को पढ़ाने की बात की गयी हो. सरकारी स्कूलों के सचिवों की हर महीने पर प्रखंड स्तर पर प्रखंड शिक्षा प्रसार अधिकारी और प्रखंड विकास पदाधिकारी की अध्यक्षता में ‘गुरु गोष्ठी’ आयोजित की जाती है. इन बैठकों में हर बार शिक्षकों को एक ही हिदायत कड़ाई से दी जाती है कि किसी भी हाल में मध्याह्न् भोजन का कार्यक्रम बंद नहीं होना चाहिए. लेकिन यह कभी नहीं कहा जाता कि किसी भी स्थिति में बच्चों की पढ़ाई बाधित नहीं होनी चाहिए.

कहने का मतलब यह कि क्या स्कूलों में इतनी सारी इमारतें सिर्फ खिचड़ी खिलाने के लिए बनायी गयी हैं. मुङो तो यह समझ नहीं आता कि यह किस तरह की सरकार है, जिसे आम आदमी के दुख व परेशानियों से कोई सरोकार नहीं है. साफ है कि सरकार बच्चों को पढ़ाना नहीं चाहती है.

करुण कुमार घांटी, ई-मेल से

Next Article

Exit mobile version