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एक खुदकुशी से उठते सवाल

देश की राजधानी दिल्ली में आयोजित आम आदमी की पार्टी की रैली में भीड़ के बीच पेड़ से लटक कर राजस्थान के एक किसान गजेंद्र सिंह की खुदकुशी कोई अनहोनी घटना नहीं है. इसके पहले भी लाखों किसान अपनी जान गंवा चुके हैं. आखिर इसके लिए जिम्मेदार कौन है? गजेंद्र सिंह की आत्महत्या के बाद […]

देश की राजधानी दिल्ली में आयोजित आम आदमी की पार्टी की रैली में भीड़ के बीच पेड़ से लटक कर राजस्थान के एक किसान गजेंद्र सिंह की खुदकुशी कोई अनहोनी घटना नहीं है.
इसके पहले भी लाखों किसान अपनी जान गंवा चुके हैं. आखिर इसके लिए जिम्मेदार कौन है? गजेंद्र सिंह की आत्महत्या के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर विपक्षी दलों द्वारा आलोचनाओं की बौछार किया जाना लोगों को असल मुद्दे से भटकाने का एक षडयंत्र मात्र है. आखिर इस अप्रिय घटना को लेकर ‘आप’ के प्रमुख को दोषी ठहराना कितना न्यायोचित है?
जहां खुद दिल्ली सरकार मंचासीन हो, केंद्र नियंत्रित पुलिस व देश का चौथा स्तंभ कहा जानेवाला मीडिया की मौजूदगी में एक किसान की दुखद मौत हैरान करनेवाली है.
क्या मीडिया का काम केवल नकारात्मक समाचार पेश करना भर है? आखिर किसान गजेंद्र के बचाव के लिए मीडिया द्वारा कोई कोशिश क्यों नहीं की गयी? साथ ही, दिल्ली पुलिस मूकदर्शक बन कर किसकी हिफाजत कर रही थी? आखिर पुलिस-प्रशासन हरकत में क्यों नहीं आये?
सरेआम किसान की दर्दनाक मौत की जितनी तीव्र निंदा की जाये, वह कम है. इस दुर्घटना के लिए दिल्ली सरकार, पुलिस और मीडिया के लोग स्पष्ट तौर पर दोषी नजर आ रहे हैं. इन सबके बीच सवाल यह भी है कि आखिर किसानों को आत्महत्या करने की जरूरत ही क्यों आन पड़ी? क्या इसके लिए सरकार ने कोई कारगर कदम उठाये हैं?
असल बहस इसी पर होनी चाहिए कि किसान आत्महत्या करने को मजबूर क्यों हैं. बाकी रही एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप की बात, तो इससे कुछ हासिल होने वाला नहीं. इससे सिर्फ सियासी रोटियां सिंक सकती हैं.
बैजनाथ महतो, हुरलुंग, बोकारो

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