सरकार द्वारा वर्ष 2004 में सात हजार करोड़ रुपये की लागत से शुरू की गयी मध्याह्न् भोजन योजना वर्ष 2013-14 में 13 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गयी. इस योजना का मुख्यत: दो लक्ष्य है.
पहला, कुपोषण को समाप्त करना और दूसरा भोजन के लालच में बच्चों को स्कूल के प्रति आकर्षित करना. आज 11 साल बाद ये दोनों ही लक्ष्य पूरा होने से काफी दूर हैं. इसके भी दो कारण हैं.
एक तो इस योजना में भ्रष्टाचार की अधिकता का होना और दूसरा स्कूलों में खाद्यान्न की कमी से अभिभावकों द्वारा बच्चों को न भेजना. आज देश में ऐसा माहौल बन गया है कि पढ़ाई कराने के बाद भी बच्चों को मजदूरी ही करनी है, तो पढ़ने में समय बरबाद करने का क्या फायदा? पहले से ही काम में जुट जाओ, लेकिन आज जरूरत बच्चों को पोषाहार देने की नहीं है. आज उनके सुखद भविष्य का भरोसा देना जरूरी है.
विनोद कुमार गुप्ता, ई-मेल से