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शिक्षा में गुणवत्ता सुधार की बात बेमानी
आज हर कोई सरकारी शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की बात करता है, लेकिन स्कूलों की हालत कैसे सुधरेगी? यह सवाल हर गरीब के जेहन में आता है. शिक्षा नीति बनानेवाले नेता और नौकरशाह के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ने नहीं जाते. इसलिए नीतियां भी उसी के अनुरूप तैयार की जाती हैं. स्कूल आनेवाले बच्चों […]
आज हर कोई सरकारी शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की बात करता है, लेकिन स्कूलों की हालत कैसे सुधरेगी? यह सवाल हर गरीब के जेहन में आता है. शिक्षा नीति बनानेवाले नेता और नौकरशाह के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ने नहीं जाते.
इसलिए नीतियां भी उसी के अनुरूप तैयार की जाती हैं. स्कूल आनेवाले बच्चों की जिम्मेदारी शिक्षकों के कंधों पर डाल दी जाती है. साथ ही, शिक्षकों की जिम्मेदारी मतदाता सूची और मध्याह्न् भोजन तैयार करना भी है. गुरु गोष्ठी में उपस्थित होना उनका परम कर्तव्य है. भले ही इस गोष्ठी में गप ही क्यों न हांकी जाये.
एक तो वैसे ही पहले से राज्य के स्कूल शिक्षकों की कमी की मार ङोल रहे हैं. ऊपर से उन्हें किसी अन्य कार्य में लगा देना शिक्षा के नाम पर खिलवाड़ नहीं तो और क्या है? ऐसी स्थिति में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की बात करना बेमानी ही है.
हरिश्चंद्र महतो, बेलपोस, प सिंहभूम
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