राष्ट्रीय चिंता है किसानों की आत्महत्या

एक समय भारत दुनिया के कृषि प्रधान देशों का सिरमौर हुआ करता था. यहां के किसान खाद्य व नकदी फसलों के बादशाह थे. यहां के मसाले दुनिया के देशों तक पहुंचे, लेकिन आज यहां के किसानों की दशा बेहद खराब है. इसके कई कारण हो सकते हैं. बीते 20-22 सालों से किसान परंपरागत प्राकृतिक पद्धति […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 6, 2015 12:12 AM
एक समय भारत दुनिया के कृषि प्रधान देशों का सिरमौर हुआ करता था. यहां के किसान खाद्य व नकदी फसलों के बादशाह थे. यहां के मसाले दुनिया के देशों तक पहुंचे, लेकिन आज यहां के किसानों की दशा बेहद खराब है.
इसके कई कारण हो सकते हैं. बीते 20-22 सालों से किसान परंपरागत प्राकृतिक पद्धति को त्याग कर आधुनिक खेती करने लगे हैं. हाइब्रिड बीज और रासायनिक खादों पर फसलों की उपज निर्धारित होती है. मशीनीकरण और पारंपरिक पद्धति को तिलांजलि देना उनके लिए महंगा साबित हो रहा है.
इस कायांतरण से किसानों को सोचने का मौका भी नहीं मिला. कॉरपोरेट घरानों के झांसे में आकर किसान कर्ज के तले दबने लगे. उन्हें मुनाफा कम और लागत ज्यादा लगने लगी. परिणामस्वरूप किसानों की स्थिति बदतर होने लगी. आज किसानों की आत्महत्या राष्ट्रीय चिंता बन गयी है.
महादेव महतो, तालगड़िया

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