बाजार भरोसे पेंशन योजना

।।अनिंदो बनर्जी।।(कार्यक्रम निदेशक, प्रैक्सिस)पेंशन फंड विनियामक व विकास प्राधिकार विधेयक, 2011 को पिछले सप्ताह राज्यसभा द्वारा मंजूरी मिलने के साथ ही संसद ने देश के कामगारों व अन्य नागरिकों को पेंशन व सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध कराने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को आखिरकार बाजार के सुपुर्द कर ही दिया. केंद्र सरकार के मंत्रिमंडल ने पिछले वर्ष अक्तूबर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 9, 2013 3:26 AM

।।अनिंदो बनर्जी।।
(कार्यक्रम निदेशक, प्रैक्सिस)
पेंशन फंड विनियामक विकास प्राधिकार विधेयक, 2011 को पिछले सप्ताह राज्यसभा द्वारा मंजूरी मिलने के साथ ही संसद ने देश के कामगारों अन्य नागरिकों को पेंशन सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध कराने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को आखिरकार बाजार के सुपुर्द कर ही दिया. केंद्र सरकार के मंत्रिमंडल ने पिछले वर्ष अक्तूबर में ही इस विधेयक को मंजूरी दे दी थी. विधेयक के पारित हो जाने से सरकार को अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश की उम्मीद है. अर्थशास्त्रियों की कई जमातों ने इस विधेयक की वजह से कम से कम 1.5 लाख करोड़ रुपये के निवेश का रास्ता खुलने की संभावना व्यक्त की है.

पेंशन विधेयक को सर्वप्रथम 2005 में लोकसभा में पेश किया गया था. इसकी मंशा के अनुरूप ही एक अंशदान आधारित नयी पेंशन व्यवस्था की भी शुरुआत की गयी. जनवरी, 2004 के बाद केंद्र सरकार में भर्ती हुए कर्मियों के लिए इस योजना में शामिल होना अनिवार्य बना दिया गया. बाद में अधिकांश राज्य सरकारों ने भी इसे स्वीकार कर लिया. इस पूरे दौर में इस योजना के विनियमन के लिए 2003 से ही संचालित एक अंतरिम प्राधिकार की कोई वैधानिक हैसियत कभी नहीं रही, जिसका निराकरण पिछले सप्ताह पारित विधेयक में किया गया है. इसके प्रावधानों के अनुसार देश में पेंशन योजनाओं के संचालन विनियमन के लिए स्थापित विनियामक एवं विकास प्राधिकार को वैधानिक हैसियत दी जानी है, जिसका कार्य पेंशन योजनाओं के संचालन पर नियंत्रण रखना तथा इन योजनाओं के निवेशकों के हितों का ध्यान रखना है.

2009 में यूपीए की सरकार ने नयी पेंशन योजना को स्वनियोजित असंगठित क्षेत्र के कामगारों तक स्वैच्छिक आधार पर विस्तारित करते हुए 2010 के केंद्रीय बजट में स्वावलंबन योजना नामक एक सहयोगदानमूलक पेंशन योजना का सूत्रपात किया, ताकि बड़ी संख्या में नागरिक अपनी सेवानिवृत्ति के लिए नियमित रूप से बचत कर सकें और सरकार के अंशदान का लाभ उठा सकें.

विधेयक के विभिन्न प्रावधानों में मुख्यत: अर्थव्यवस्था की वृद्घि दर में गति लाने के लिए बड़े स्तर पर निवेश आकर्षित करने की मंशा दिखती है. दिलचस्प है कि यद्यपि यह विधेयक निवेश आकर्षित करने की मंशा रखता है, लेकिन वास्तव में यह देश के करोड़ों कामगारों के बचत पेंशन योगदानों को दुनिया के व्यापारों सट्टाबाजारों में निवेश के रूप में उपलब्ध कराने का भी रास्ता खोलता है. नयी पेंशन योजना के शुरू होने के 4 वर्षो के अंदर ही 50 लाख से ज्यादा कामगारों ने इसमें अपना नाम दर्ज कराया है, जिनसे अब तक 35,000 करोड़ रुपये का विशाल कोष भी जुटाया जा चुका है. करोड़ों लोगों की खूनपसीने की कमाई से जुटायी गयी इस राशि के साथ निवेश बाजार में निजी फंड प्रबंधकों के भरोसे कोई जोखिम उठाना कितना नीतिपरक है, यह बड़ा सवाल है.

विधेयक को आखिरी स्वरूप देने के लिए नियुक्त वित्तीय स्थायी समिति की उस अनुशंसा को विधेयक के पारित स्वरूप में नहीं माना गया है, जिसमें पेंशन फंड प्रबंधकों में कम से कम तीन प्रबंधकों को सार्वजनिक क्षेत्र से सुनिश्चित किया जाना था. हां, इसके वर्तमान प्रावधानों के अनुसार कम से कम एक फंड प्रबंधक का सार्वजनिक क्षेत्र से होना जरूरी है. निवेशकों के पैसों का फंड प्रबंधकों द्वारा अनिवार्य बीमा कराये जाने की अनुशंसा को भी नहीं माना गया है. हालांकि वित्तीय स्थायी समिति की अनुशंसा के अनुसार पारित विधेयक में पेंशन योजनाओं के निवेशकों को यह विकल्प उपलब्ध कराने की बात कही गयी है कि यदि वे चाहें तो न्यूनतम आश्वस्त प्रतिलाभ के विकल्प को चुन सकते हैं, जिससे उनके निवेश को प्राधिकार द्वारा अधिसूचित ऐसी ही योजनाओं में डाला जायेगा, जिनमें न्यूनतम वापसी सुनिश्चित हो. असंगठित क्षेत्र के अल्पशिक्षित कामगारों के मद्देनजर इसके लिए उपयुक्त पारदर्शी नियमावलियां बनाना जरूरी है, ताकि उनके हितों की रक्षा हो सके.

वर्तमान में यह विधेयक विदेशी निवेशकों को देश में संचालित पेंशन योजनाओं में 26 प्रतिशत तक की हिस्सेदारी की इजाजत देता है, लेकिन यदि निकट भविष्य में संसद बीमा प्रक्षेत्र में 49 प्रतिशत तक की विदेशी हिस्सेदारी के लिए प्रस्तावित संशोधन विधेयक को स्वीकृति दे देती है, तो पेंशन योजनाओं में भी यह सीमा प्रभावी होगी तथा विदेशी निवेशकों की हिस्सेदारी 49 प्रतिशत तक की हो जायेगी. वित्त मंत्री के अनुसार संसद के शीतकालीन सत्र में इस दिशा में पहल की संभावना है.

महत्वपूर्ण बात यह है कि इस विधेयक के प्रावधान फिलहाल कर्मचारी भविष्य निधि योजना इसके अंशदाताओं पर लागू नहीं होंगे, जिसका प्रबंधन सरकार द्वारा ही किया जायेगा.

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