पानी रे पानी तेरा रंग कैसा..

।।निशिरंजन ठाकुर।।(प्रभात खबर, भागलपुर)पानी के बहाने कई चीजें याद की जा सकती हैं. पानी बढ़ जाये तो बाढ़, घट जाये तो सुखाड़. कहीं सड़कों पर बस यूं ही बहता रहता है पानी, तो कहीं बहुराष्ट्रीय कंपनियां इसे बेच कर करोड़ों–अरबों कमा रही हैं. कहीं नदी से पानी नहीं छोड़ने, तो कहीं छोड़ने के मामले को […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 9, 2013 3:29 AM

।।निशिरंजन ठाकुर।।
(प्रभात खबर, भागलपुर)
पानी के बहाने कई चीजें याद की जा सकती हैं. पानी बढ़ जाये तो बाढ़, घट जाये तो सुखाड़. कहीं सड़कों पर बस यूं ही बहता रहता है पानी, तो कहीं बहुराष्ट्रीय कंपनियां इसे बेच कर करोड़ोंअरबों कमा रही हैं. कहीं नदी से पानी नहीं छोड़ने, तो कहीं छोड़ने के मामले को लेकर मुकदमे चल रहे हैं. कहीं साफशुद्ध, तो कहीं गंदा पानी. गंदे पानी से बीमार लोग. पानी को शुद्ध करने की मशीनें और इन मशीनों का भी अरबों का बाजार. वाटर प्यूरिफायर मशीन का रेट बढ़ गया है.

टीवी
पर दावा किया जा रहा है : पानी इतना शुद्ध, जैसे उबला हुआ. शुद्ध पानी बनानेवाली कंपनी का व्यवसाय बढ़ गया है. टीवी पर गंदा पानी से होनेवाली बीमारी के बारे में रोज बताया जा रहा है. बोतलबंद पानी का रेट दूध के बराबर हो गया है. बोतलबंद पानी पीने के बाद खाली बोतल गंगा में फेंकी जा रही है. पॉलिथिन बैग में सब्जियां लायी जा रही हैं. इस्तेमाल के बाद कूड़ा बन चुके पॉलिथिन बैग गंगा में फेंके जा रहे हैं.
पानी
के संकट की मार खेतीबाड़ी ङोली रही है. किसान झेल रहे हैं. खेतों में धान की फसल पीली पड़ गयी. समय पर बारिश नहीं हुई. मानसून कमजोर हो गया. अब इस धान के पौधे का चारे के रूप में इस्तेमाल हो रहा है. किसानों ने बताया : पटवन के लिए पानी नहीं है. बारिश ने दगा दे दिया. बाढ़ और सुखाड़ के बीच यह स्थिति आपको महज 30-35 किलोमीटर के अंदर दिख सकती है. पानी वहां भी रुला रही है, पानी यहां भी रुला रही है. रोनेवाले गांव के लोग हैं. जिनका घर गिरा, जिनकी फसलें बरबाद हुई हैं.

अभी नदियां बौरा गयी हैं. जीवनदायिनी गंगा हाहाकार मचा रही है. पानी एनएच शहर के कई प्रतिष्ठानों तक पहुंच गया है. लाखों लोग सड़क पर जिंदगी गुजार रहे हैं. पानी का कहर, लेकिन पीने का शुद्ध पानी नहीं. बूढ़ेबुजुर्ग बताते हैं (गंगा को 125 सालों में इस तरह बौराते नहीं देखा था. फसलें बह गयीं. कच्चे मकान गिर गये. सड़कें कट गयीं. पर्यावरणविद् कहते हैं) उथली हो गयी है गंगा. मुख्य धारा के पास गंगा की उठतीगिरती लहरें, सचमुच सिहरन पैदा करती हैं. जैसे क्रोधमें विक्षिप्त हो गयी हों. पुराने किनारे कट गये हैं. अब नये किनारे बन गये हैं.

यह किनारा ध्यान से देखिए, आपको कई सवालों के जवाब मिल जायेंगे. इन नये किनारों पर गंगा अपने साथ कई चीजों को बहा कर ले आयी हैं. क्विंटलों प्लास्टिक के थैले. नहीं नष्ट होने वाले त्यक्त पदार्थो का पहाड़. जैसे क्रोध से गंगा वापस कर रही हो इन चीजों को. कह रही हो, कहां रहने दिया मुङो जीवनदायिनी. मेरी सांसें भी घुटने लगी हैं. सारी हदें तोड़ दी तुमने. फिर क्यों मचे हाहाकार? कुछ दिनों में पानी उतर जायेगा. गंगा अपनी पुरानी जगह पर लौट जायेगी, लेकिन क्या इस तबाही से हम कोई सबक ले पायेंगे.

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