सांप्रदायिकता के जहर से सावधान

राजधानी रांची के पास एक छोटा सा कस्बा है बेड़ो. रविवार को यहां अखिल भारतीय हिंदू जागरण मंच के संरक्षक, सुनील शास्त्री जी महाराज पधारे हुए थे. यह मंच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवार का हिस्सा है. उन्होंने कुछ कार्यक्रमों में शिरकत करने के साथ, पत्रकारों से बातचीत भी की. इस दौरान शास्त्री जी ने फरमाया- […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 12, 2015 12:29 AM
राजधानी रांची के पास एक छोटा सा कस्बा है बेड़ो. रविवार को यहां अखिल भारतीय हिंदू जागरण मंच के संरक्षक, सुनील शास्त्री जी महाराज पधारे हुए थे. यह मंच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवार का हिस्सा है.
उन्होंने कुछ कार्यक्रमों में शिरकत करने के साथ, पत्रकारों से बातचीत भी की. इस दौरान शास्त्री जी ने फरमाया- ‘‘वर्ष 1951 में हुई जनगणना में देश में 98 प्रतिशत हिंदू थे. वहीं वर्ष 2011 में हुई जनगणना में हिंदुओं की संख्या घट कर सिर्फ 55 प्रतिशत रह गयी है, जो चिंता की बात है.’’ कोई थोड़ा भी जागरूक नागरिक बता सकता है कि ये आंकड़े सरासर झूठ हैं. असलियत यह है कि 1951 में हिंदू आबादी लगभग 84 प्रतिशत और 2011 में 78.35 प्रतिशत दर्ज की गयी. अब सवाल है कि इस तरह के झूठे आंकड़े देने के पीछे मंशा क्या है? दरअसल, यही फासीवादी राजनीति का बुनियादी औजार है. इसमें बहुसंख्यकों को अल्पसंख्यकों की तरह सोचने पर मजबूर किया जाता है.
बहुसंख्यकों के दिल में ठूंस-ठूंस कर यह बिठाया जाता है कि उनका अस्तित्व खतरे में है, जबकि हकीकत में ऐसे कोई हालात नहीं होते. लोग हकीकत की जगह झूठे प्रचार पर यकीन करें, इसके लिए हिटलर के प्रचार मंत्री गोएबल्स का सिद्धांत अपनाया जाता है कि ‘एक झूठ को सौ बार बोलो, तो लोग झूठ को सच मान लेते हैं.’ झूठे आंकड़ों के सहारे शास्त्रीजी बिना किसी संप्रदाय का नाम लिये, मुसलमानों और ईसाइयों पर निशाना साध रहे थे. हिंदुत्ववादी संगठन यह दुष्प्रचार हमेशा करते रहते हैं कि मुसलमानों की जन्म दर लगातार बढ़ रही है और यही हाल रहा तो हिंदू अल्पसंख्यक हो जायेंगे.
लेकिन जनगणना के आंकड़े इसे झुठलाते हैं. 2011 की जनगणना बताती है कि उलटे, पिछले दस सालों में मुसलिमों की जन्म दर में पूर्व के दशक के मुकाबले कमी आयी है. शास्त्री जी ने यह भी कहा कि भारत में रहनेवाले सभी धर्म व संप्रदाय के लोगों को संविधान और राष्ट्रगान का सम्मान करना चाहिए.
ऊपर से इस बात में कोई बुराई नहीं लगती, लेकिन थोड़ा गहराई में जाकर सोचें तो ये यह बताने की कोशिश है कि कुछ धर्म ऐसे हैं जो संविधान और राष्ट्रगान का सम्मान नहीं करते. यह भी परोक्ष रूप से अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने का तरीका है. सांप्रदायिकता के ऐसे जहर से सभी सावधान रहें.

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