‘ठूसन विद्या’ के फेर में फंसे छात्र

।। विशाल दत्त ठाकुर ।। (प्रभात खबर, देवघर) चंद दिनों पहले ही शिक्षक दिवस पर देशभर में शिक्षा का अलख जगानेवाले शिक्षकों को याद किया गया. लेकिन आज शिक्षा का व्यवसायीकरण इस कदर हो गया है कि शिक्षण व्यवस्था, शिक्षक और छात्र सभी शिक्षा बाजार की वस्तु बन कर रह गये हैं. सरकारी स्कूलों के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 11, 2013 4:43 AM

।। विशाल दत्त ठाकुर ।।

(प्रभात खबर, देवघर)

चंद दिनों पहले ही शिक्षक दिवस पर देशभर में शिक्षा का अलख जगानेवाले शिक्षकों को याद किया गया. लेकिन आज शिक्षा का व्यवसायीकरण इस कदर हो गया है कि शिक्षण व्यवस्था, शिक्षक और छात्र सभी शिक्षा बाजार की वस्तु बन कर रह गये हैं.

सरकारी स्कूलों के शिक्षक मिडडे मिल बनवाने, जनगणना करने, वोटर लिस्ट बनवाने में लगे रहते हैं और छात्र घरघर, गलीगली खुली शिक्षा की दुकानों में जाकर ज्ञान की खरीदारी कर रहे हैं. सरकारी स्कूलों के बच्चों के अभिभावक यह कह कर अपने बच्चों को ट्यूशन पढ़ने भेजते हैं कि स्कूल में पढ़ाई नहीं होती है.

लेकिन प्राइवेट स्कूलों के भी 80 फीसदी छात्र स्कूल के बाद कोचिंग घरों में प्राइवेट ट्यूटर से ठूसन विद्या ग्रहण करते हैं. प्रसंगवश अपने स्कूल कॉलेज के दिनों के दो वाकये यहां प्रस्तुत कर रहा हूं. जब मैं उच्च विद्यालय में था, वहां प्रत्येक दिन परंपरा के अनुसार प्रधानाचार्य महोदय प्रार्थना के बाद, क्लास शुरू होने से पहले छात्रों को कुछ देर संबोधित करते थे.

उस समय की उनकी एक बात आज भी याद है कि ..स्कूल के बाद तुम लोग ठूसन विद्या (ट्यूशन के लिए वह इसी शब्द का इस्तेमाल करते थे) ग्रहण करने क्यों जाते हो.

कक्षा के अलावा अगर किसी विषय में कोई दिक्कत हो, तो हमसे किसी भी समय पूछ लो या स्कूल के संबंधित विषयों के शिक्षकों से समझ लो. अगर कोई शिक्षक नहीं बताते हैं तो भी हमें बताओ. अगर कक्षा में तुम्हें कोई बात समझ में नहीं आती है और तुम दोबारा नहीं पूछते हो तो लाख ठूसन विद्या पढ़ लो, कुछ नहीं होगा. अभिभावक अलग से पैसे खर्च कर तुम्हारे दिमाग में जबरन विद्या ठुंसवाना चाहते हैं, जो कि संभव नहीं है. यह बात बहुत हद तक सही है.

दूसरा वाकया मेरे कॉलेज के दिनों का है, जब मैं इंटर (साइंस) में पढ़ता था. मेरे अभिभावक ने भी लगभग सभी विषयों के लिए अलगअलग ट्यूशन की व्यवस्था कर दी थी. मैं भी रोज सुबह उठ कर साइकिल से पहले, फिर दूसरे, फिर तीसरे शिक्षक के पास पढ़ने जाता था. लेकिन वहां मुझे दूसरे प्रकार के शिक्षक मिले, जिनकी प्राथमिकता में सबसे पहले पैसा था. रोज ट्यूशन फीस के लिए तगादा.

एक शिक्षक तो यहां तक कह देते थे कि कल पैसे नहीं दोगे तो मत आना. यह मेरा व्यवसाय है. तुम्हें समझ में आये या आये, इससे मुझे कोई मतलब नहीं है. आज गलीगली कुकुरमुत्ते की तरह ट्यूशन और कोचिंग संस्थान खुले हैं, जहां धड़ल्ले से ठूसन विद्या बिक रही है. इन पर किसी का नियंत्रण नहीं है.

आज हजारों ऐसे उदाहरण हैं, जहां छात्र बिना ट्यूशनकोचिंग के सिर्फ सरकारी स्कूलकॉलेजों में पढ़ कर नाम रोशन कर रहे हैं. दूसरी तरफ ऐसे भी उदाहरण हैं कि जहां बच्चे अच्छे निजी स्कूलों कोचिंग संस्थानों में पढ़ कर भी अच्छा नहीं कर पा रहे हैं. हमें आज नहीं तो कल, इस बारे में सोचना ही होगा.

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