इस फैसले से आगे के सवाल

।। अवधेश कुमार ।। (वरिष्ठ पत्रकार) देश में बढ़ रहे यौन अपराधों की रोकथाम का आयाम काफी व्यापक है. इससे निबटने को कानून व न्यायिक प्रक्रियाओं के समानांतर सामाजिक, सांस्कृतिक और अर्थिक परिवर्तन के लिए भी मुहिम चलानी होगी. दस सितंबर की सुबह पूरा देश इस उद्विग्नता से आंखें खोल रखा था कि दिल्ली के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 11, 2013 4:52 AM

।। अवधेश कुमार ।।

(वरिष्ठ पत्रकार)

देश में बढ़ रहे यौन अपराधों की रोकथाम का आयाम काफी व्यापक है. इससे निबटने को कानून न्यायिक प्रक्रियाओं के समानांतर सामाजिक, सांस्कृतिक और अर्थिक परिवर्तन के लिए भी मुहिम चलानी होगी.

दस सितंबर की सुबह पूरा देश इस उद्विग्नता से आंखें खोल रखा था कि दिल्ली के बर्बर गैंग रेप पर क्या फैसला आता है. चारों अपराधियों को उन पर लगाये गये सभी आरोपों में दोषी करार दिये जाने से देश की उद्विग्नता आंशिक आत्मसंतोष में परिणत हुई होगी. पूर्ण आत्मसंतोष तो उनको सजा मिलने के बाद ही होगी.

11 मार्च, 2013 को मुख्य आरोपी राम सिंह ने तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली और 31 अगस्त को दूसरे नाबालिग आरोपी को सिर्फ तीन साल की सजा हुई थी. जाहिर है, इससे देश का गुस्सा कम नहीं हुआ. नाबालिग की सजा पर देश के एक बड़े वर्ग की हालत मन मसोस कर रह जाने जैसी थी.

इस पृष्ठभूमि में इन चारों आरोपियों को दोषी करार देना और मिलनेवाली सजा का महत्व समझ में आता है. अपने आदेश में न्यायाधीश ने साफ कहा कि ये चारों मुजरिम हैं और आरोप पत्र में 302, 365, 376, 307, 377, 394, 395, 396, 412, 120 बी सहित जो 13 धाराएं लगायी गयी हैं, वे सब सही हैं.

यानी हत्या, हत्या का प्रयास, सामूहिक बलात्कार, अप्राकृतिक यौन कर्म, अपहरण, डकैती, आपराधिक षड्यंत्र, शारीरिक उत्पीड़न, सबूत मिटाने आदि सभी मामलों में इनको दोषी मान लेने के बाद इनको क्या सजा होगी, इसका मोटा अनुमान लगाया जा सकता है.

इस समय हमें यह स्वीकार करने में कोई समस्या नहीं है कि पूरे मामले की कानूनी परिणति देश के सामूहिक चरित्र के अनुरूप हो रही है.

हालांकि कानूनी पड़ाव को अभी हाइकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट, फिर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका एवं राष्ट्रपति के यहां दया याचिका तक जाना है और इसमें समय लग सकता है. 23 दिसंबर, 2012 को दिल्ली हाइकोर्ट द्वारा इस मामले की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक न्यायालय गठित करने के बाद इतना समय लगा है.

अगर मामला सामान्य न्यायालय में होता तो पता नहीं और कितना समय लगता. जाहिर है, ऐसे मामले में, जिसने पूरे देश, हमारी संसद, न्यायपालिका से लेकर संयुक्त राष्ट्रसंघ तक को झकझोरा हो, फैसले में समय का पहलू अवश्य विचारणीय है.

अगर ऐसे बर्बर और जघन्य यौन अपराधों के मामले में जल्द सजा देने की परिपाटी शुरू हो सकी, तो यह एक युगांतकारी परिवर्तन जैसा होगा. वास्तव में दिल्ली गैंग रेप मामला भारत के आपराधिक न्याय प्रणाली के इतिहास में एक ऐसा महत्वपूर्ण बिंदु साबित हो रहा है जहां से एक नये दौर के शुरुआत की नींव पड़ी है.

इस घटना के बाद स्वर्गीय जस्टिस जेएस वर्मा की अध्यक्षता में समिति गठित हुई, जिसने जितनी तेजी में लोगों, समूहों का विचार लेकर अपनी अनुशंसाएं कीं, वह पहली बार था. इसके बाद सरकार ने पहले उसे अध्यादेश के रूप में कानूनी जामा पहनाया और बाद में संसद ने भी उसकी संस्तुति कर दी. संविधान के अनुच्छेद-20 के तहत प्रावधान है कि जब कोई अपराध होता है तो उस वक्त तय कानून के तहत ही आरोपी पर केस चलता है.

अपराध के हर मामलों की तरह यौन दुराचार के निषेध में भी कानून की भूमिका सीमित है. केवल कानून के भय से अपराध नियंत्रित हो जाये या रुक जाये, तो फिर इतने अपराध होते ही नहीं. इसलिए हम यह नहीं कह सकते कि नये कानून और इस फैसले का बिल्कुल इसकी प्रकृति के अनुरूप नियंत्रण और निषेध के संदर्भ में युगांतकारी प्रभाव होगा.

आखिर उस घटना के बाद बने माहौल के बावजूद यौन उत्पीड़न और दुष्कर्म की घटनाएं सामने रही हैं. हाल ही में मुंबई में हुई सामूहिक बलात्कार की घटना ने पूरे देश को झकझोरा है. हर दिन हमारे सामने बलात्कार की घटनाओं की खबरें आती हैं. जबजब ऐसी घटनाएं आती हैं, हमारा सिर शर्म से झुकता है और खून उबलता है.

अपराधी पकड़े भी जा रहे हैं और नये कानून के तहत उनको सजा मिलना पहले से ज्यादा सुनिश्चित हुआ है. बावजूद इसके अपराध हो रहे हैं.

आप गौर करें तो पाएंगे कि 16 दिसंबर, 2012 से लेकर अब तक जितने भी बहुचर्चित मामले सामने आये हैं, जिसने देश को उद्वेलित किया है, उन सभी में अपराध में समाज के निचले तबके के युवा संलिप्त रहे हैं. आखिर क्यों? कानून इसका जवाब नहीं ढूढ़ सकता है. यह सांस्कृतिकसामाजिकआर्थिक प्रश्न है.

नये आथिर्क ढांचे में जीवनयापन की बढ़ती विवशता में अपने मूल स्थानों से पलायन करते लोग, उजड़ते गांव, अजनबियों से बसते शहरों के कारण जो सांस्कृतिक, सामाजिक जटिलताएं पैदा हुई हैं, उनमें यौन संबंधों और अपराधों के ऐसे आयाम सामने रहे हैं, जिनकी पहले कल्पना तक नहीं थी.

साफ है कि ऐसे यौन अपराधों की रोकथाम का आयाम काफी व्यापक है और कानून न्यायिक प्रक्रियाओं के समानांतर सामाजिक, सांस्कृतिक और अर्थिक परिवर्तन के लिए भी मुहिम चलानी होगी.

Next Article

Exit mobile version