लंगड़ा घोड़ा किसी काम का नहीं होता

।।जावेद इस्लाम।।(प्रभात खबर, रांची)ये जनाब 74 वाले हैं. अरे भाई, 1974 के आंदोलनकारी नहीं, बल्कि उन 74 प्रतिशत सीइओ की जमात से हैं, जिन्होंने भावी प्रधानमंत्री के लिए अपनी खास पसंद बता दी है. ये महोदय, यानी ‘मिस्टर 74’, उदारीकरण के ‘मनमोहनी’ स्वर्णकाल में लाइमलाइट में आयी एक बड़ी कंपनी के सीइओ (मुख्य कार्यकारी अधिकारी) […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 12, 2013 2:27 AM

।।जावेद इस्लाम।।
(प्रभात खबर, रांची)
ये जनाब 74 वाले हैं. अरे भाई, 1974 के आंदोलनकारी नहीं, बल्कि उन 74 प्रतिशत सीइओ की जमात से हैं, जिन्होंने भावी प्रधानमंत्री के लिए अपनी खास पसंद बता दी है. ये महोदय, यानी ‘मिस्टर 74’, उदारीकरण के ‘मनमोहनी’ स्वर्णकाल में लाइमलाइट में आयी एक बड़ी कंपनी के सीइओ (मुख्य कार्यकारी अधिकारी) हैं. इनकी कंपनी ने उस स्वर्णकाल में खूब माल बनाया था. अब मौजूदा दौर में मद्धिम पड़ चुकी अर्थव्यवस्था में मुनाफे का हाल रुपये की तरह खस्ता हो गया है, तो छटपटा रहे हैं.

इनकी जमात ने बड़ी उम्मीद के साथ पीएम पद के लिए अपनी पसंद बतायी है, लेकिन उनसे चाहते क्या हैं यह साफ नहीं हो पाया है. हमारे चाचा द्वय, श्रीराम चाचा और रहीम चाचा यह साफ करने के लिए मिस्टर 74 का साक्षात्कार लेने पहुंचे. यह साक्षात्कार ऐसे समय में लिया गया, जब वर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन जी सेंट पीटर्सबर्ग में जी-20 के नेताओं के सामने धांसू भाषण झाड़ कर व मनमोहनी आर्थिक सुझाव देकर लौटे हैं. लौटते समय जहाज में ही पत्रकारों से कह दिया कि वे अब तीसरा टर्म नहीं चाहते और राहुल बाबा के नीचे देश सेवा करने को तैयार हैं. अब राहुल बाबा मनमोहन जी के बड़े जूते में अपना पांव डाल कर चलने के लिए तैयार हैं या नहीं, या फिर खुद मनमोहन जी ने राहुल बाबा के लिए पीएम का रास्ता कितना हमवार किया है, यह अलग प्रसंग है. प्रस्तुत है साक्षात्कार का अंश :

मिस्टर 74, आप लोग भावी पीएम से क्या चाहेंगे?

हम या हमारे मालिकों को क्या चाहिए, अकूत लाभ के सिवा!

वर्तमान पीएम ने तो खूब फायदा पहुंचाया आप लोगों को, इतनी जल्दी उनसे नमकहरामी?

धंधे के नीतिशास्त्र में सिर्फ शुभ-लाभ का मतलब है, हलाल या हराम कोई चीज नहीं होती.

पसंदीदा पीएम से लाभ ही लाभ मिलेगा, इसकी क्या गारंटी है?

हमारा वर्ग भावनाओं में निर्णय नहीं लेता. हम बहुत आगे तक देखते हैं, जहां तक आप सोच भी नहीं सकते. हमारी पसंदीदा आर्थिक नीतियों को हमारा पसंदीदा पीएम ही आगे बढ़ा सकता है.

मनमोहनी टीम भी तो आपकी ही नीतियों को चला-बढ़ा रही है!

हां, यह सही है, पर लंगड़ा घोड़ा किसी काम का नहीं होता.

पर आपकी पसंद पर तो दाग है?

हमारे पास हर दाग धोने का ‘डिटरजेंट’ है. आजकल इसे ‘पीआर’ (जनसंपर्क) कहते हैं. हमने सारी एजेंसियों, टीवी-अखबार को इस काम में लगा दिया है. हम अपनी आकांक्षा को जन आकांक्षा बना देंगे.

फिर भी, कसर रह गयी तो?

..तो ‘ध्रुवीकरण’ है न! देख नहीं रहे क्या, ध्रुवीकरण का सिद्धांत मुजफ्फरनगर, यूपी में किस तेजी से लागू किया जा रहा है?

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