पूजा शुरू, लेकिन ‘परीक्षा’ अभी जारी
एक प्रचलित कहावत है कि घर में दीया जल जाये, तभी मंदिर में दीया जलाना चाहिए. उत्तराखंड सरकार को शायद ऐसी कहावत के विवेक पर भरोसा नहीं है. आपदा प्रभावित इलाके में जनजीवन को दोबारा पटरी पर लाने में अपनी नाकामी पर परदा डालने की हड़बड़ी में उसने केदारनाथ धाम में पूजा शुरू करवाने का […]
एक प्रचलित कहावत है कि घर में दीया जल जाये, तभी मंदिर में दीया जलाना चाहिए. उत्तराखंड सरकार को शायद ऐसी कहावत के विवेक पर भरोसा नहीं है. आपदा प्रभावित इलाके में जनजीवन को दोबारा पटरी पर लाने में अपनी नाकामी पर परदा डालने की हड़बड़ी में उसने केदारनाथ धाम में पूजा शुरू करवाने का निर्णय लिया. खबर है कि पूजा शुरू करवाते हुए मंदिर के ‘शुद्धीकरण’ और ‘प्रायश्चितीकरण’ के प्रयास किये गये.
धर्म-अध्यात्म की दुनिया में इन प्रयासों का जो भी प्रतीकात्मक महत्व हो, तथ्य यह भी है कि सूबे के बाढ़ प्रभावित इलाके में तार-तार हुई मनुष्यता अब तक प्रतिष्ठित नहीं हो पायी है. केदारनाथ धाम से लगती घाटी में शवों का मिलना अब भी जारी है. केदारनाथ मंदिर में पूजा भले शुरू हो गयी हो, जून महीने में मची तबाही का साया पूरे रुद्रप्रयाग जिले में बदस्तूर मंडरा रहा है. यही वजह है कि पूजा शुरू होने के बावजूद सरकार यह बताने की स्थिति में नहीं है कि आम जन के लिए केदारनाथ की यात्रा कब शुरू होगी. केदारनाथ धाम से सड़क संपर्क अभी कायम नहीं हो सका है. पूजा के लिए सामग्री और पुरोहित मंदिर परिसर में हेलीकॉप्टर से पहुंचाये गये. राज्य में टूटी 1520 सड़कों में से 1300 अब भी खस्ताहाल हैं.
1100 किलोमीटर लंबे हाईवे में महज 300 किमी की मरम्मत का काम हो पाया है. पुनर्वास कार्य का जायजा लेकर लौटे मीडियाकर्मियों का कहना है कि बाढ़ प्रभावित इलाके में लोगों को अनाज और जलावन तक 15 किमी की मशक्कत भरी यात्र के बाद नसीब हो पा रहा है. आपदा प्रभावित उत्तराखंड के ये तथ्य वहां की प्रशासनिक लापरवाही के साक्ष्य तो हैं ही, यह भी संकेत करते हैं कि आपदा से निपटने और उसके बाद के पुनर्वास-कार्य के लिए प्रशासनिक स्तर पर न तो कोई कारगर योजना मौजूद है, न ही राज्य या केंद्र स्तर पर ऐसी योजना की रूपरेखा बनाने की कोई तत्परता दिखती है.
हिंदू जनमानस केदारनाथ धाम को पंचकेदार और चारधाम में एक मान कर श्रद्धा की दृष्टि से देखता है. बाढ़ की विभीषिका के बाद वहां पूजा फिर शुरू होना उसके लिए राहत देनेवाली खबर है, लेकिन उत्तराखंड सरकार की असली परीक्षा पूजा शुरू करवाने में नहीं, बाढ़-प्रभावित इलाके में जनजीवन को पुराने र्ढे पर वापस लौटाने में है.