झारखंड में भी हो चिपको आंदोलन
जंगलों और पठारों से घिरा यह प्रदेश अपने नैसर्गिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है. आज जिस तरह जंगल और पहाड़ काटे जा रहे हैं और खनिजों का बेहिसाब दोहन हो रहा है, उससे ‘झारखंड’ को ‘बंजरखंड’ होने में देर नहीं लगेगी. बीते वर्षो में 38 पहाड़ गायब हो गये हैं. वहीं, अब भी 20 […]
जंगलों और पठारों से घिरा यह प्रदेश अपने नैसर्गिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है. आज जिस तरह जंगल और पहाड़ काटे जा रहे हैं और खनिजों का बेहिसाब दोहन हो रहा है, उससे ‘झारखंड’ को ‘बंजरखंड’ होने में देर नहीं लगेगी. बीते वर्षो में 38 पहाड़ गायब हो गये हैं.
वहीं, अब भी 20 हजार अवैध उत्खनन दिन-रात झारखंड को तोड़ने में लगे हैं.
प्रशासन व सरकार सो रहे हैं. शायद यहां की जनता ने भी इसे अपनी नियति मान कर आंखें बंद कर ली है. न तो यहां अब जल, जंगल और जमीन के लिए कोई आंदोलन होता है और न ही कोई संगठन इनकी रक्षा के लिए मुहिम चलता है. सब अपनी-अपनी रोटी सेंकने में व्यस्त हैं.
प्रकृति को अपना देवता माननेवाले समुदाय के होते हुए भी इस प्रदेश में चिपको जैसा कोई आंदोलन खड़ा नहीं किया गया है, जबकि इसकी सख्त जरूरत है.
नीतीश कुमार निशांत, रांची