चीन के साथ व्यापार और जरूरी चिंताएं

दुनिया का कोई भी देश अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अपनी भागीदारी बढ़ाये बगैर विकसित विश्व का हिस्सा नहीं बना है. भारत इस नियम का अपवाद नहीं हो सकता. यहां असल सवाल यह है कि भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय व्यापार बढ़ाने की सर्वाधिक उर्वर संभावनाएं किस ओर हैं? अमेरिकी अर्थव्यवस्था मंदी के बाद अब जाकर कुछ ऊपर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 16, 2015 7:34 AM

दुनिया का कोई भी देश अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अपनी भागीदारी बढ़ाये बगैर विकसित विश्व का हिस्सा नहीं बना है. भारत इस नियम का अपवाद नहीं हो सकता. यहां असल सवाल यह है कि भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय व्यापार बढ़ाने की सर्वाधिक उर्वर संभावनाएं किस ओर हैं? अमेरिकी अर्थव्यवस्था मंदी के बाद अब जाकर कुछ ऊपर उठ रही है, जापान की अर्थव्यवस्था एक समय से जड़ता की शिकार है और यूरोपीय अर्थव्यवस्था में फिलहाल सुधार के आसार नहीं हैं. भारत और चीन की स्थिति इस मामले में बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से बेहतर है.

चीनी बाजार का बढ़ना अब भी जारी है, भले ही उसकी दर पहले से तनिक कम है. भारत में भी बाजार बढ़त पर है. ऐसे में स्वाभाविक बात तो यही है कि एशिया की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाएं भूगोल और इतिहास की दूरियों को पाट कर पारस्परिक हित को नये सिरे से पहचानें और उसके आधार पर एशियाई महाद्वीप को विकास का इंजन बनाएं. चीन के दौरे पर जाने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कमोबेश इसी सोच का इजहार किया था. अब वहां एक तरफ उनकी यह सोच कुछ हद तक फलवती होती दिख रही है, क्योंकि चीन के साथ रेल, अंतरिक्ष, पर्यटन, शिक्षा, इंजीनियरिंग, समुद्र-विज्ञान, भू-विज्ञान और योग समेत 24 अहम समझौतों पर सहमति हुई है, तो दूसरी तरफ साङोपन के साथ विकास की उनकी सोच को कुछ धक्का भी लगा है, क्योंकि समझौते के तुरंत बाद प्रधानमंत्री को कहना पड़ा है कि ‘चीन को उन मुद्दों पर अपना नजरिया बदलना चाहिए, जो हमारी साङोदारी की ताकत को कमजोर कर रहे हैं.’ जाहिर है, प्रधानमंत्री को लग रहा है कि व्यापारिक साङोदारी की ताकत को कुछ मुद्दे कमजोर कर रहे हैं.

सीमा विवाद का मुद्दा ऐसा ही है. ढेर सारी राजनयिक-कूटनयिक वार्ताओं और दोनों देशों की सेनाओं के बीच शांति बहाली के संयुक्त प्रयासों के बावजूद दोनों देश यह तय नहीं कर पाये हैं कि 4,000 किलोमीटर लंबी सीमा-रेखा को विवादग्रस्त मान कर बात हो, जैसा चीन कहता है, या फिर 2,000 किलोमीटर लंबी सीमा-रेखा को विवादग्रस्त मान कर उसके लिए सुलह के प्रयास हों, जो भारत का प्रस्ताव है.

एक बार फिर सीमा-विवाद ही प्रधानमंत्री के दौरे के ऐन बीच में उभर कर आया और इस मुद्दे ने पारस्परिक व्यापारिक लेन-देन के 25 मामलों पर बनी सहमति के दूध में एक तरह से खटाई डालने का काम किया. इस कूटनीतिक अदब से तो चीन भी बखूबी परिचित है कि दो देशों के राष्ट्राध्यक्ष जब मिलते हैं, तो उनके मेल को संभावनाशील बनाये रखने के लिए दोस्ती की बातें ज्यादा कही जाती हैं और विवादित विषयों को तूल देने से परहेज किया जाता है. चीन ने इस अदब को ही उलट दिया. इधर चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग के साथ व्यापारिक समझौता-वार्ता चल रही थी, उधर राज्य-नियंत्रित चीनी टेलीविजन ने भारत का एक नक्शा दिखाया, जिसमें जम्मू कश्मीर और अरुणाचल के हिस्से गायब थे. जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने चीनी टेलीविजन पर दिखाये गये इस नक्शे को ट्वीट करते हुए चुटकी ली कि ‘इस मसले पर जो लोग लाल-पीले हो जाते हैं, उनकी तरफ से कोई विरोध प्रदर्शन नहीं हुआ है.’ जाहिर है, उमर अब्दुल्ला का इशारा भाजपा की तरफ था, जिसने यूपीए शासन के अंतिम दिनों में लद्दाख में चीनी घुसपैठ को प्रमुखता से उठाया था. चाहे अब्दुल्ला राष्ट्रीय सुरक्षा के एक संवेदनशील मसले का तात्कालिक तौर पर राजनीतिकरण कर रहे हों, तो भी तल्ख सच्चाई तो यही है कि चीन अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और लद्दाख को भारत का हिस्सा मानने से कतराता रहता है.

पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में चीन की दिलचस्पी भी सर्वविदित है. अरुणाचल प्रदेश के लिए स्टेपल वीजा का मसला कई दफे भारत में सुर्खियां बटोर चुका है. संभव है, प्रधानमंत्री ने चीनी टेलीविजन पर दिखाये गये नक्शे के संदर्भ में भी अपनी बात कही हो. पर, क्या राष्ट्रीय सुरक्षा के संवेदनशील मसले से आंखें मूंद कर कोई देश किसी अन्य देश के साथ व्यापारिक संबंध की राह पर आगे बढ़ सकता है? इसका उत्तर आसान नहीं है और इस मोर्चे पर दोनों देशों की विदेश नीति विषयक समझ के अंतर को रेखांकित करना जरूरी है. चीन ने भौगोलिक विस्तारवाद की अपनी सामरिक नीति को अपने व्यापारिक विस्तारवाद का सहायक बनाया है. उसकी विदेश-नीति में व्यापार के बढ़ने का एक अर्थ प्रभुत्व का विस्तार भी है. पाक अधिकृत कश्मीर और अफगानिस्तान में वह ऐसा ही कर रहा है. इसलिए चीन के साथ भारत को अपने व्यापारिक रिश्ते तलाशते वक्त हमेशा यह ध्यान रखना होगा कि यह किसी रूप में चीनी प्रभुत्व को बढ़ानेवाला न बन जाये.

Next Article

Exit mobile version