जिसे सत्ता सौंपी, उसी ने धोखा दिया
महंगाई ने एक बार फिर आंख दिखाना शुरू कर दिया है. लोग असमंजस में हैं कि क्या खायें और क्या नहीं. भारतीयों की थाली में प्रमुखता से शामिल रहनेवाली अरहर की दाल की कीमतों ने शतक लगाना शुरू कर दिया है, तो चना अर्धशतक पार कर गया है. आम भारतीयों के लिए दाल ही प्रोटीन […]
महंगाई ने एक बार फिर आंख दिखाना शुरू कर दिया है. लोग असमंजस में हैं कि क्या खायें और क्या नहीं. भारतीयों की थाली में प्रमुखता से शामिल रहनेवाली अरहर की दाल की कीमतों ने शतक लगाना शुरू कर दिया है, तो चना अर्धशतक पार कर गया है.
आम भारतीयों के लिए दाल ही प्रोटीन का मुख्य स्नेत है. ऐसे में उनके लिए एक वक्त संतुलित आहार लेना भी दूभर होता जा रहा है. निश्चय ही इससे देश की बड़ी आबादी से मुंह का निवाला छिन रहा है. कारण यह है कि कीमतों के साथ कदमताल मिलाना लोगों के लिए आसान नहीं रह गया है.
सरकारी आंकड़ों पर यकीन न करें और जमीनी स्तर पर देखें, तो महंगाई घटने के बजाय दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है. खाने-पीने की चीजों के साथ अन्य जरूरी वस्तुओं के दाम में भी वृद्धि होती जा रही है. बीते दिनों हुई बारिश से खाद्य पदार्थो की कीमतों में आसमानी उछाल आ गया है. बाजार में कदम रखते ही लोगों की जेब साथ छोड़ने लगती है.
देश के मध्यमवर्गीय लोगों के लिए उन्हें मिलनेवाली तनख्वाह में खर्च चलाना कठिन हो गया है. आखिर लोग कहां डाका डालने जायें! सरकार आये दिन डीजल-पेट्रोल की कीमतें बढ़ा रही है.
बाजार में बढ़ते भाव से गरीब लोगों की हालत तो और भी खराब हो रही है. बहुसंख्य आबादी अब पौष्टिक आहार की सिर्फ कल्पना ही कर सकती है. महंगाई बढ़ रही है, लेकिन लोगों की आमदनी नहीं बढ़ रही है. हां, सरकारी कर्मचारियों की झोली में छप्पर फाड़ के भत्ते डाले जा रहे हैं.
महंगाई की मार से देश की बड़ी आबादी खुद को असहाय महसूस कर रही है. लोग खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं कि जिसे देश की सत्ता महंगाई मिटाने के लिए सौंपी थी, उसी ने धोखा दे दिया.
सुधीर कुमार, राजाभीठा, गोड्डा