तकनीक के युग में हिंदी का विकास

हाल के दिनों में हिंदी हित-चिंता में दो तरह की बातें कही जा रही हैं. एक पक्ष कहता है कि हिंदी ही नहीं, देश की बाकी भाषाएं भी अंगरेजी के मुकाबले पिछड़ रही हैं. इस पक्ष की दलील है कि अंगरेजी माध्यम के स्कूल बढ़े हैं, निम्न मध्यवर्ग के भीतर अपने बच्चों को अंगरेजी पढ़ाने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 14, 2013 2:33 AM

हाल के दिनों में हिंदी हित-चिंता में दो तरह की बातें कही जा रही हैं. एक पक्ष कहता है कि हिंदी ही नहीं, देश की बाकी भाषाएं भी अंगरेजी के मुकाबले पिछड़ रही हैं. इस पक्ष की दलील है कि अंगरेजी माध्यम के स्कूल बढ़े हैं, निम्न मध्यवर्ग के भीतर अपने बच्चों को अंगरेजी पढ़ाने की ललक बढ़ी है, ज्ञान के नये क्षेत्र, मसलन सूचना-प्रौद्योगिकी और प्रबंधन की शिक्षा-सामग्री मुख्य रूप से अंगरेजी में है और इससे मोटी तनख्वाह वाली नौकरियां भी अंगरेजी में ही हैं.

संक्षेप में, यह पक्ष मानता है कि आर्थिक-सामाजिक विकास की भाषा के रूप में अंगरेजी का स्वीकार बढ़ने से हिंदी सहित शेष भारतीय भाषाओं का भविष्य कुछ खास नहीं है. दूसरा पक्ष कहता है कि बाकी भाषाओं का भविष्य चाहे जैसा हो, सूचना-प्रौद्योगिकी के इस युग में हिंदी सर्वाधिक तेजी से बढ़ती हुई भाषा है. यह पक्ष आंकड़ों की ओट में कहता है कि देश में मोबाइल और इंटरनेट उपयोग करनेवालों की संख्या बढ़ी है.

सूचना-प्रौद्योगिकी के उत्पाद बनानेवाली कंपनियों ने लगातार अपने उत्पादों का हिंदीकरण किया है. ऑपरेटिंग सिस्टमों के हिंदीकरण और नये सॉफ्टवेयरों से कंप्यूटर पर हिंदी में सूचना लेखन, पठन, वाचन, संग्रहण और संप्रेषण सहज हुआ है. फिर, हिंदीभाषी समाज तेजी से साक्षरता की तरफ बढ़ता समाज है, उसमें हिंदी में सूचना पाने की ललक है. इसलिए हिंदी भाषा के अखबारों और टीवी चैनलों की संख्या बढ़ रही है. दोनों पक्ष की दलीलों में दम है, लेकिन उनका सच आधा-अधूरा है. भाषा के होने और बढ़ने के लिए जितना जरूरी है उसका प्रसार, उतना ही जरूरी है प्रसार पानेवाली भाषा के भीतर विचार का होना.

सूचना प्रौद्योगिकी के दौर में हिंदी सहित कई भारतीय भाषाओं के प्रसार को बल मिला है, पर उनमें विचार का स्वर मंद पडा है. ज्यादातर देशी भाषाएं भूमंडलीकरण के दौर में तुरंत-फुरंत सूचना देने के दबाव में अनुवाद की भाषा बन कर रह गयी हैं. उनकी चिंता किसी अंगरेजी शब्द का हिंदी-तमिल-तेलुगु पर्याय गढ़ने की ज्यादा है, उस मौलिक अवधारणा को गढ़ने की कम जो शब्दों को नये सिरे से संस्कार देते और नये शब्द का निर्माण करते हैं. इस अर्थ में, हिंदी दिवस पर हमारी मुख्य चिंता एक अनूदित समाज न बन कर हिंदी सहित भारतीय भाषाओं में ज्ञान के सृजन की होनी चाहिए.

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