यह बुढ़ापा तो हम सबों को आना है

शिकोह अलबदर प्रभात खबर, रांची मेरे एक मित्र ने अपने बच्चे की एक तसवीर फेसबुक पर पोस्ट करते हुए अपने दिल के जज्बातों को साझा किया. उसने लिखा कि माता-पिता औलाद के दुनिया में आने और फिर आंखें खोलने से लेकर उनकी मुस्कुराहट, उनका लड़खड़ा कर चलना, दौड़ना और फिर जिंदगी के सफर का पूरी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 20, 2015 2:31 AM

शिकोह अलबदर

प्रभात खबर, रांची

मेरे एक मित्र ने अपने बच्चे की एक तसवीर फेसबुक पर पोस्ट करते हुए अपने दिल के जज्बातों को साझा किया. उसने लिखा कि माता-पिता औलाद के दुनिया में आने और फिर आंखें खोलने से लेकर उनकी मुस्कुराहट, उनका लड़खड़ा कर चलना, दौड़ना और फिर जिंदगी के सफर का पूरी जिम्मेदारी के साथ साथ निभाते हैं.

हर लम्हा, वालिदैन बच्चों की हर हरकत पर खुशी का इजहार करते हैं. उनकी नजर में उनकी अपनी संतान दुनिया में सबसे खूबसूरत है. मां-बाप ही ऐसी दो शख्सीयतें होती हैं जो अपने बच्चों की कामयाबियों पर मुसर्रत से झूम उठते हैं और औलाद के लिए उनके दिलों में हसद और जलन का कोई जज्बा नहीं होता.

यानी मां-बाप और बच्चों के बीच एक ऐसा रिश्ता होता है जिसमें किसी किस्म की मिलावट नहीं होती. औलाद खुश होती है, तो मां-बाप खुश और औलाद परेशान होती है तो वो भी परेशान हो जाते हैं.

इस पोस्ट को पढ़ते हुए मुङो कुछ दिनों पहले की एक बात याद आ गयी. मुङो जानने वाले एक व्यक्ति ने मुझसे फोन पर बातें करते हुए अपने एक बुजर्ग रिश्तेदार की चर्चा करते हुए बताया कि कुछ दिनों पहले उसके सगे बेटे ने ही अपनी मां के साथ इस कदर गाली-गलौज की थी कि मां फफक कर रो पड़ी. बेटे का यह कहना था कि जो भी संपत्ति है, उसका बंटवारा किया जाये और उसके हिस्से को अलग कर दिया जाये.

उस वृद्ध महिला के बारे में मुङो यह भी मालूम है कि बरसों पहले उसके पति गुजर गये, एक-दो बच्चों की शादी पिता की छत्र-छाया में हो गयी थी बाकी कि जिम्मेदारी उस मां ने खुद अकेले पूरी की. हम जानते हैं कि वृद्ध लोग किसी एक घर में नहीं बल्कि हर घर में हैं. उनमें हम आप सभी शामिल हैं.

मेरे वृद्ध पिता भी मुझसे हमेशा यह कहते हैं कि बेटा जिंदगी में खुदा किसी को माजूर ना बनायें. बुढ़ापा तो खुद एक बीमारी है. उनके जैसे कई वृद्ध लोगों को मैंने ऐसी ही बातें करते देखी है, जो सिर्फ यह चाहते हैं कि वो इस दुनिया से हंसी-खुशी विदा हो लें.

उनकी बची जिंदगी में बस यही ख्वाहिश होती है कि उन्हें इस विदा होते पल में जो उनके हिस्से की थोड़ी-सी ही खुशी है वो मिलती रहे. मेरे मन में हमेशा एक बात यह आती है कि क्या हम यह खुशी अपने बूढ़े मां-बाप को दे पाते हैं? हाल ही मैंने पढ़ा कि 51.5 प्रतिशत वृद्ध लोग अपने परिवार के सदस्यों से ही गाली-गलौज का शिकार होते हैं.

इस देश के 24.1 प्रतिशत वृद्ध लोग तो मारपीट का शिकार होते हैं. वृद्ध माता-पिता के उत्पीड़न के मामले में 59.9 फीसदी बेटे शामिल होते हैं. उम्र की इस दहलीज पर ढलते लोगों के लिए हम सबों की जिम्मेदारी होती है कि हम उन्हें अकेला ना छोड़े. उन्हें भावनात्मक सपोर्ट दिया जाना जरूरी है.

उनके लिए संबल बनना हमारा फर्ज है. हमें सोचना होगा कि हमारे घर के वृद्धों की क्या स्थिति है. कुछ ऐसा करें कि उन्हें आश्रम की नहीं जरूरत पड़े बल्कि वह जहां हो अपना घर हो. यह भी याद रहे कि बुढ़ापा सबको आयेगा.

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