एक लंबी लकीर खींचने की जरूरत
हाल के दिनों में निजी विद्यालयों के खिलाफ जो आम आदमी में आक्रोश पैदा हुआ है, सही मायने में वह शिक्षा के व्यवसायीकरण की पराकाष्ठा का परिणाम था. सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता नहीं के बराबर है, वहीं निजी स्कूली की चमक-धमक व अच्छे परिणाम ने आम आदमी को भी निजी स्कूलों में नामांकन […]
हाल के दिनों में निजी विद्यालयों के खिलाफ जो आम आदमी में आक्रोश पैदा हुआ है, सही मायने में वह शिक्षा के व्यवसायीकरण की पराकाष्ठा का परिणाम था. सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता नहीं के बराबर है, वहीं निजी स्कूली की चमक-धमक व अच्छे परिणाम ने आम आदमी को भी निजी स्कूलों में नामांकन के लिए प्रेरित किया है.
आम आदमी अपने जीवन को दावं पर लगा कर बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने का जज्बा रखता है. इसी का लाभ निजी स्कूल उठा कर अभिभावकों का आर्थिक दोहन करते हैं.
आज जब निजी स्कूलों में पुनर्नामांकन को लेकर पूरे झारखंड में आग लगी है, तो इसकी तपिश मंत्री, मुख्यमंत्री को भी महसूस हो रही है. इसका कारण यह है कि जब आम आदमी जागता है, तो सभी सतर्क हो जाते हैं. बलि का बकरा किसी को भी बनाया जा सकता है. अभिभावक हमेशा से निजी स्कूलों के द्वारा बलि का बकरा बनाये जाते रहे हैं. अब झारखंड के बच्चों को मिलनेवाली शिक्षा की गुणवत्ता की समीक्षा करने का वक्त आ गया है.
आज सरकारी स्कूलों में पढ़नेवाले बच्चों के पीछे जो खर्च किया जा रहा है, वह निजी स्कूलों से कहीं अधिक है. इसके बावजूद परिणाम सिफर ही है. ऐसा भी नहीं है कि सरकारी स्कूलों में काबिल शिक्षकों की कमी है. हमने देखा है कि काबिल तो ऐसे हैं कि यदि इनका सही रूप से इस्तेमाल किया जाये, तो ये शिक्षा के क्षेत्र में नये कीर्तिमान स्थापित कर सकते हैं.
इसका जीवंत उदाहरण नेतरहाट आवासी स्कूल है. सरकार को निजी स्कूलों के खिलाफ ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं है, बल्कि सरकारी स्कूलों की चरमराती व्यवस्था को सुदृढ़ करना है. आज निजी स्कूलों के सामने एक लंबी लकीर खींचने की जरूरत है.
देवेंद्र कुमार वर्मा, हासिर, बोकारो