‘संस्कृति के चार अध्याय’ के बहाने

अनंत विजय वरिष्ठ पत्रकार राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर हिंदी साहित्य के उन विरल रचनाकारों में से हैं, जिनकी कविताओं में राष्ट्रीयता, देशभक्ति, सामाजिकता, प्रेम, अध्यात्म आदि तत्व एक साथ मौजूद हैं. उन्होंने गद्यलेखन भी किया. आजादी के बाद जब भारतीयता और राष्ट्रवाद की बात हो रही थी, दिनकर जी ने एक किताब ‘संस्कृति के चार […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 21, 2015 2:28 AM

अनंत विजय

वरिष्ठ पत्रकार

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर हिंदी साहित्य के उन विरल रचनाकारों में से हैं, जिनकी कविताओं में राष्ट्रीयता, देशभक्ति, सामाजिकता, प्रेम, अध्यात्म आदि तत्व एक साथ मौजूद हैं.

उन्होंने गद्यलेखन भी किया. आजादी के बाद जब भारतीयता और राष्ट्रवाद की बात हो रही थी, दिनकर जी ने एक किताब ‘संस्कृति के चार अध्याय’ लिखी. इसके पहले संस्करण में उनकी भूमिका में 5 जनवरी, 1956 की तारीख दर्ज है. इस किताब के प्रकाशन के साठ साल पूरे हो रहे हैं.

इस मौके पर देशभर में दिनकर पर केंद्रित कार्यक्रमों की शुरुआत हो रही है. इसकी पहल की है पूर्व केंद्रीय मंत्री सीपी ठाकुर ने. साल भर चलनेवाले कार्यक्रम की शुरुआत कल (22 मई को) दिल्ली के विज्ञान भवन में होगी, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसका आगाज करेंगे.

दिनकर जी ने विपुल लेखन किया, लेकिन किसी खास विचारधारा को नहीं मानने की वजह से उनके लेखन का उचित मूल्यांकन नहीं हो सका. उन्होंने लिखा है, ‘साहित्य के क्षेत्र में हम न तो किसी गोयबेल्स की सत्ता मानने को तैयार हैं, जो हमसे नाजीवाद का समर्थन लिखवाये और न ही किसी स्टालिन की, जो हमें साम्यवाद से तटस्थ रह कर फूलने-फूलने नहीं दे सकता.

हमारे लिए फरमान न तो क्रेमलिन से आ सकता है और न आनंद भवन से. अपने क्षेत्र में तो हम उन्हीं नियंत्रणों को स्वीकार करेंगे, जिन्हें साहित्य की कला अनंतकाल से मानती चली आ रही है.’ ऐसी बातें दिनकर उस वक्त कह रहे थे, जब देश वामपंथ और नेहरू के रोमांटिसिज्म के प्रभाव में था.

दिनकर की किताब ‘संस्कृति के चार अध्याय’ फिर से बहस की मांग करती है. दिनकर ने इसमें भारत में चार क्रांतियों का जिक्र किया है. उनका मानना है देश की सांस्कृतिक क्रांति का इतिहास उन्हीं चार सांस्कृतिक क्रांतियों का इतिहास है. दिनकर के मुताबिक पहली क्रांति तब हुई जब आर्य भारत आये और उनका संपर्क आर्येत्तर जातियों से हुआ.

दूसरी क्रांति तब हुई जब महावीर और बुद्ध ने स्थापित धर्मो के विरुद्ध विद्रोह किया और उपनिषदों की चिंतनधारा को खींच कर अपनी दिशा में ले गये. तीसरी क्रांति तब हुई जब इसलाम, विजेताओं के धर्म के रूप में भारत पहुंचा और हिंदुत्व से उसका संपर्क हुआ. चौथी क्रांति तब हुई जब भारत में यूरोप का आगमन हुआ.

‘संस्कृति के चार अध्याय’ में दिनकर ने सांस्कृतिक इतिहास को जिस तरह से कालखंडों में विभाजित कर लिखा है, वह इतिहासकारों के सामने एक चुनौती के रूप में अपने प्रकाशन के साठ साल बाद भी खड़ा है.

दरअसल दिनकर जब हिंदू और मुसलमान के बीच सांस्कृतिक एकता और समान संस्कृति की बात करते हैं, तो यह कथित प्रगतिशील इतिहासकारों को नागवार गुजरता है. लिहाजा उन्होंने इसे गंभीरता से नहीं लिया. हालांकि बाद के दिनों में नामवर सिंह भी यह कहने पर मजबूर हो गये कि कुल मिलाकर दिनकर का रचनात्मक व्यक्तित्व निराला की तरह है.

दिनकर ने साफ किया है कि ‘संस्कृति के चार अध्याय’ इतिहास नहीं है, लेकिन जिस तरह से उन्होंने राष्ट्रीयता और सांस्कृतिक क्रांतियों को परखा है, वह पुनर्पाठ के लिए पुख्ता जमीन तैयार करती है.

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