भारतीय कूटनीति का सेल्फीकरण
पुष्परंजन दिल्ली संपादक, ईयू-एशिया न्यूज आज का मंगोलिया मुगलों के पूर्वज चंगेज खान पर नहीं इतराता. उसको गोबी मरूभूमि में सोने, तांबे, कोयले और यूरेनियम के विशाल भंडार पर भरोसा है. कीमती खनिज के बूते मंगोलिया, एंग्लो-ऑस्ट्रेलिया से लेकर रूस और चीन के बीच कूटनीति कर रहा है. भारतीय विदेश मंत्रालय की वेबसाइट तरक्की पर […]
पुष्परंजन
दिल्ली संपादक, ईयू-एशिया न्यूज
आज का मंगोलिया मुगलों के पूर्वज चंगेज खान पर नहीं इतराता. उसको गोबी मरूभूमि में सोने, तांबे, कोयले और यूरेनियम के विशाल भंडार पर भरोसा है. कीमती खनिज के बूते मंगोलिया, एंग्लो-ऑस्ट्रेलिया से लेकर रूस और चीन के बीच कूटनीति कर रहा है.
भारतीय विदेश मंत्रालय की वेबसाइट तरक्की पर है.पहले इसके पन्ने शुष्क, रूखे, और पॉलिसी पर आधारित बयानों से भरे होते थे. अब विदेश मंत्रालय के वेब पन्नों पर ‘यू-ट्यूब एमइए चैनल’ है, आप उन देशों की सांस्कृतिक विरासत, पर्यटन पर वृत्तचित्र, वीडियो वार्ता देख सकते हैं, जहां हमारे नेता यात्राओं पर जा रहे हैं.
जो कमी खटकती है, वह यह कि विदेश मंत्रालय में एक ‘सेल्फी डेस्क’ नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार जो तीन देशों की यात्राएं की हैं, उसकी यूएसपी (यूनिक सेलिंग प्वाइंट), हिंदी में कहें तो ‘अपूर्व विक्रय बिंदु’, सेल्फी रही है.
चीन गये तो वहां के सरकारी बौद्ध लामाओं से लेकर, प्रधानमंत्री ली किचियांग से मोदी जी की सेल्फी शुरू हुई, उसके प्रकारांतर चीनी युवतियां और एनआरआइ तक सेल्फी से तर गये. मंगोलिया में भी राष्ट्रपति साखियागिन एल्बेगदोर्ज मोदी जी के साथ सेल्फी में कैद होकर रोमांचित थे. मंगोलिया के युवा पहली बार किसी विदेशी प्रधानमंत्री के साथ सेल्फी लेकर गर्व का अनुभव कर रहे थे.
दक्षिण कोरिया के ‘सोल एयर बेस’ पर मोदी जी के साथ सेल्फी लेनेवालों की उमड़ी भीड़ को देख कर लगा कि हमारे देश को अब अपने प्रधानमंत्री की सुरक्षा की चिंता नहीं करनी चाहिए. सेल्फी ने दक्षिण कोरिया की राष्ट्रपति पार्क गेयून-ह्ये पर इतना सकारात्मक असर डाला कि उन्होंने ‘इंफ्रा फंड’ नाम से 10 अरब डॉलर के कोष बनाने की घोषणा कर डाली. इस कोष से अपने देश में स्मार्ट सिटी बनेंगे, विद्युत उत्पादन होगा और रेल का कायाकल्प होगा.
सोल स्थित भारतीय दूतावास के अनुसार, 2013 तक दक्षिण कोरिया और भारत के बीच 17.57 अरब डॉलर का व्यापार हुआ है.
इसके बाद के आंकड़े नहीं हैं. भारतीय बाजार में दक्षिण कोरियाई उत्पादों की हिस्सेदारी तीन प्रतिशत से भी कम है. प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के बाद जो सात समझौते हुए, उसके बिना पर संकल्प किया गया है कि दक्षिण कोरिया ऊर्जा, अधोसंरचना, ऑटोमोबाइल, ऑडियो-विजुअल, एनीमेशन, फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भारत को सहयोग करेगा. दोनों पक्ष ‘इसरो’ और ‘कोरिया एयरो स्पेस रिसर्च इंस्टीट्यूट’ के जरिये अंतरिक्ष में सहकार का संकल्प कर चुके हैं.
प्रधानमंत्री मोदी और उनकी दक्षिण कोरियाई समकक्ष ने ‘डीटीएए’ के संशोधित दस्तावेज पर हस्ताक्षर किये हैं. 88 देशों से भारत सरकार ने डबल टैक्सेशन एव्याएड एग्रीमेंट (डीटीएए) किये हैं, जिनमें से एक दक्षिण कोरिया भी है.
‘डीटीएए’ समझौते के तहत यदि किसी दक्षिण कोरियाई नागरिक का शेयर भारत की कंपनियों को ट्रांसफर होता है, तो उससे होनेवाले पूंजी लाभ (कैपिटल गेन) पर भारत सरकार कर लगा सकती है. यही कराधान व्यवस्था दक्षिण कोरिया में भारतीय निवेशकों के साथ लागू होगी. दक्षिण कोरिया, भारत में और निवेश करे, इसके लिए ‘कोरिया प्लस’ सुविधा की घोषणा की गयी है.
फरवरी, 2014 तक दक्षिण कोरिया से 1.39 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष पूंजी निवेश भारत में हुआ है. 1.39 अरब डॉलर की प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश में तेरह साल लगे हैं. इसे ध्यान में रखिये, तो लगता है कि ‘इंफ्रा फंड’ में दस अरब डॉलर जुटाने के लिए सारे घोड़े खोल देने होंगे.
प्रधानमंत्री मोदी जहां गये थे, उसके बगल में उत्तर कोरिया है. वहां के रक्षा मंत्री को तोप से उड़ा दिये जाने की घटना से पूरा विश्व स्तब्ध है. दुनिया की खुफिया एजेंसियां सुनिश्चित करने में लगी हैं कि अधिनायक किम जोंग उन ने अपने प्रतिरक्षा मंत्री ह्योन योंग-चोल को विमानभेदी तोप से 29 अप्रैल, 2015 को उड़ाया था या कुछ और बात है!
इसे पक्का करने के लिए सेटेलाइट की तसवीरों, और खुफिया एजेंसियों की रिपोर्टो को मिला कर समीक्षा की जा रही है. 17 दिसंबर, 2011 को उन ने उत्तर कोरिया की सत्ता संभाली, तब से लेकर अप्रैल, 2015 तक किम जोंग उन 70 बड़े अधिकारियों को मौत के घाट उतार देने का आदेश दे चुके हैं.
इतनी बड़ी संख्या में अधिकारियों को मार डालने का विश्व रिकॉर्ड न तो किम जोंग उन के दादा ‘किम इल सुंग’ ने बनाया था, और न ही उन के पिता, ‘किम जोंग इल’ ने, जो 1994 से 2011 तक सत्ता में रहे. खैर! मोदी जी के प्रस्थान करते ही अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी चीन पहुंचे, उससे पहले वे दक्षिण कोरिया में थे. अमेरिका एक बार फिर उत्तर कोरिया के विरुद्ध प्रतिबंध लगाने के अभियान में जुट गया है.
उत्तर कोरिया में इतना सब कुछ हुआ, लेकिन भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के प्रधानमंत्री का चुप रहना अखर गया. पेइचिंग से सोल तक सियासी चौपड़ चलनेवालों को मालूम है कि 14 अप्रैल, 2015 को उत्तर कोरिया के विदेश मंत्री री सु-योंग नयी दिल्ली आये थे. पिछले 25 साल में विदेश मंत्री के कद के किसी नेता का उत्तर कोरिया से नयी दिल्ली आना कूटनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय था.
खासकर विदेश मंत्री री सु-योंग के इस दौरे पर नयी दिल्ली स्थित चीनी दूतावास की नजर थी कि आखिर प्रधानमंत्री मोदी के चीन, दक्षिण कोरिया और मंगोलिया जाने से एक माह पहले उत्तर कोरिया के विदेश मंत्री के आने का मतलब क्या था?
विदेश मंत्री री अपने समकक्ष सुषमा स्वराज से मिले. उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी से भी उनका मिलना हुआ, और फिर री फ्योंगयांग लौट गये. री से क्या बातें हुईं, यह सब बंद मुट्ठी की तरह है. इतना तो तय है कि उत्तर कोरिया के विदेश मंत्री री, मोदी जी के ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के लिए नहीं आये थे.
तो क्या उत्तर कोरिया को पाकिस्तान के विरुद्ध इस्तेमाल करने की रणनीति तैयार हो रही है? पाकिस्तान के नाभिकीय कार्यक्रम में मददगार रहे उत्तर कोरिया को बहुत भरोसे के साथ नहीं देखा जाना चाहिए. उत्तर कोरिया से 50 करोड़ डॉलर का सालाना व्यापार भारत के साथ हो रहा है.
मंगोलिया, 1398 का मंगोलिया नहीं है, जब तैमूर लंग ने 17 दिसंबर को नसीरुद्दीन महमूद तुगलक को हरा कर तीन दिनों तक दिल्ली को लूटा था. आज का मंगोलिया मुगलों के पूर्वज चंगेज खान पर भी नहीं इतराता. आज के मंगोलिया को गोबी मरूभूमि में सोने, तांबे, कोयले और यूरेनियम के विशाल भंडार पर भरोसा है.
कीमती खनिज के बूते मंगोलिया, एंग्लो-ऑस्ट्रेलिया से लेकर रूस और चीन के बीच कूटनीति कर रहा है. भारत और मंगोलिया के बीच 2014 में मात्र 1.60 करोड़ डॉलर का व्यापार हुआ था.
19 मई, 2015 को वॉल स्ट्रीट जर्नल की हेडलाइन थी, ‘मोदीज् मैजिकल टुअर ऑफ मंगोलिया.’ मोदी जी वाद्य यंत्र बजा रहे थे, मंगोलिया के राष्ट्रपति साखियागिन एल्बेगदोर्ज के साथ बगलगीर होकर सेल्फी बना रहे थे, उसी पर केंद्रित यह खबर थी!