यही कार्य संस्कृति चाहिए

गुरुवार के प्रभात खबर के अंक में एक पाठक (सुनील महतो) का मुख्यमंत्री के नाम एक पत्र छपता है. इसमें वह रांची शहर के रोड की खराब स्थिति की पीड़ा का बखान करता है और मुख्यमंत्री से खुद शहर का मुआयना करने का आग्रह करता है. दो-तीन घंटे के अंदर खुद मुख्यमंत्री रघुवर दास सड़क […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 22, 2015 5:04 AM

गुरुवार के प्रभात खबर के अंक में एक पाठक (सुनील महतो) का मुख्यमंत्री के नाम एक पत्र छपता है. इसमें वह रांची शहर के रोड की खराब स्थिति की पीड़ा का बखान करता है और मुख्यमंत्री से खुद शहर का मुआयना करने का आग्रह करता है. दो-तीन घंटे के अंदर खुद मुख्यमंत्री रघुवर दास सड़क पर निकल पड़ते हैं और सड़क बनाने का आदेश देते हैं. मुख्यमंत्री का यह कदम बताता है कि वे कितने संवेदनशील हैं और राज्य की एक सामान्य जनता के आग्रह को कितनी अहमियत देते हैं. मुख्यमंत्री का यह कदम प्रशंसनीय है.

संदर्भ : मुख्यमंत्री निकले मुआयना करने

अनुज कुमार सिन्हा

रखंड की राजनीति का एक सुखद पल. 15 साल के झारखंड के इतिहास में ऐसे अवसर बिरले ही आये होंगे. अखबार में एक पाठक का पत्र छपता है और उस पत्र को अहमियत देते हुए मुख्यमंत्री रघुवर दास खुद सड़कों पर निकल जाते हैं. ठीक उसी सड़क पर, जिसके बारे में उक्त पाठक ने शिकायत की थी.

मुख्यमंत्री सड़क का मुआयना करते हैं और रातो-रात बनाने का आदेश देते हैं. संभव हो कि कल सवेरे (शुक्रवार को) जब वह पाठक उस रास्ते से गुजरेगा, तो सड़क बननी (मरम्मत) शुरू हो गयी होगी. ऐसा शायद राज्य में पहली बार हुआ है. झारखंड को ऐसी ही कार्य-संस्कृति चाहिए. पुराने जमाने में राजा, प्रजा का दुख जानने के लिए वेश बदल कर निकला करते थे. अब राजा तो नहीं हैं, लेकिन सत्ता के शीर्ष पद पर बैठा व्यक्ति अगर जनता के दुख को इसी प्रकार समझने लगे, तो डेमोक्र्रेसी और राज्य के लिए शुभ संकेत है.

देखने में लग सकता है कि यह तो मामूली घटना है, लेकिन ऐसे निर्णयों के दूरगामी प्रभाव पड़नेवाले हैं. जनता में सरकार के प्रति विश्वास पनपता है. उसके मन में यह भावना बैठती है कि उसके दुख को भी सुननेवाला कोई है. लंबे समय से नेता जनता के सुझाव को दरकिनार करते रहे हैं, अफसर जनता से कटते रहे हैं. इसलिए जनता-सत्ता के बीच की दूरी बढ़ी है. ऐसे कदम से यह खाई पटेगी.

यह सही है कि अफसर खास कर सीनियर भी दफ्तरों में बैठ कर योजना बनाते हैं, फील्ड में जाने से हिचकते हैं, औचक निरीक्षण नहीं के बराबर करते हैं. इसी झारखंड में केबी सक्सेना नामक आइएएस अफसर थे, बेहद ईमानदार, कर्मठ. धनबाद के उपायुक्त बने थे और उत्तरी छोटानागपुर के आयुक्त भी थे. बाद में दिल्ली चले गये. उनमें एक अद्भुत गुण था. खुद निकलते थे और वेश बदल कर लोगों से मिल कर सच्चाई का पता लगाते थे. अब तो शोर मचा कर अधिकारी स्कूल-अस्पताल का निरीक्षण करते हैं. जब ये जाते हैं तो सारे शिक्षक-डॉक्टर मौजूद रहते हैं.

सफाई हो गयी होती है. ऐसे में कैसे पकड़ेंगे गड़बड़ी. अब समय आ गया है, जब सीनियर अधिकारी भी निकलें, खुद देखें. वैसे मंत्री अब गांवों में (आज रात से ही) ठहरने लगे हैं. खुद मुख्यमंत्री भी एक दिन गांव में रात में रहनेवाले हैं. छोटे-छोटे शहरों में कैबिनेट की बैठक हो रही है. ऐसा इसलिए हो रहा है, ताकि मंत्री-अफसर जमीनी हकीकत को पहचान सकें. जनता से सीधे जुड़ सकें और अधिकारियों को भी लगे कि काम नहीं करने पर वे पकड़े जायेंगे. झारखंड अगर अब तक पीछे है, तो उसका बड़ा कारण कार्य संस्कृति का गड़बड़ होना है. नियमों का पालन नहीं करना है.

अब सड़क के मामले को ही देख लें. मुख्यमंत्री का पद सबसे बड़ा पद होता है. अब रोड खराब है तो उसे भी सीएम देखेंगे. आखिर उनके मातहत अधिकारी क्या कर रहे थे? खुद मुख्यमंत्री कई बार कह चुके हैं कि हर छोटी शिकायत उन तक आने के पहले हल कर लें, लेकिन ऐसा नहीं होता. जब जनता हर जगह से निराश हो जाती है, तभी सीएम के पास जाती है. अफसरों को अपनी कार्य संस्कृति बदलनी होगी. सीएम हर जगह और हर मामले में नहीं जा सकते. यह उनका काम भी नहीं है.

सरकार का काम नीतियां बनाना है और उसे लागू करना ब्यूरोक्रैट्स का काम है. उन अफसरों को या उन जनप्रतिनिधियों को थोड़ी शर्म आनी चाहिए, जिनका यह काम था और इस काम के लिए सीएम को आना पड़ा. अब भविष्य में यह स्थिति फिर उत्पन्न न हो, यह देखना अधिकारियों का काम है. सड़क का खराब होना मामूली बात नहीं है. किसी राज्य के बारे में जो धारणा बनती है, उसमें सड़कों और कानून-व्यवस्था का बड़ा हाथ होता है.

अब सोचिए, अगर दूसरे राज्यों से आनेवाले ट्रक या बस झारखंड से गुजरते हैं, उन्हें खराब सड़कों से गुजरना पड़ता है, उसमें लूट-डकैती होती है, उनसे पुलिस वसूली करती है, तो जब ये बस-ट्रक चालक अपने राज्य में लौटते हैं तो झारखंड के बारे में क्या धारणा बनती होगी. इसके विपरीत अगर यह सब ठीक रहे तो अपने राज्य का देश भर में नाम होगा. झारखंड को इसी दूसरे रास्ते पर ले जाना है, तो सभी की जिम्मेवारी बनती है. जनता की भी.

अब गौर कीजिए. सड़कें खराब होती हैं, तो इसका बड़ा कारण नाली नहीं होना और उन पर लगातार पानी बहना भी एक कारण है. जिस सड़क की आज सुबह से चर्चा हो रही है, उसके खराब होने का बड़ा कारण भी यही है. क्या नाली नहीं बन सकती. नियमों को तोड़ कर बिल्डरों ने अपार्टमेंट बनाये हैं, नालियां नहीं बनायी है. अपार्टमेंट का पानी सड़कों पर जा रहा है. सड़कें खराब होती हैं और सरकार का (यानी हम जनता का) पैसा बर्बाद होता है.

फिर भी कोई कार्रवाई नहीं होती. कितने बड़े बिल्डर क्यों न हों, नियम तोड़नेवाले, सड़क पर पानी बहानेवाले और सरकारी जमीन पर कब्जा करनेवालों को दंडित करना होगा. अगर अपार्टमेंट बनते समय कार्रवाई होती तो ये दिन नहीं देखने पड़ते. यानी सिस्टम को पटरी पर लाना होगा. अधिकारी समेत जनता को भी चेतना होगा और एक बेहतर नागरिक की जिम्मेवारी निभानी होगी, तभी झारखंड का कायाकल्प हो सकता है.

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