क्यों न होती सरकारी स्कूलों में पढ़ाई?

देश की गरीब जनता अपने बच्चों का भविष्य संवारने के लिए पढ़ाई कराने के लिए सरकारी स्कूलों में भेजती है. लेकिन सरकार की गलत नीतियां ही उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही हैं. सरकारी और निजी स्कूलों में होनेवाली पढ़ाई की तुलना की जाये, तो जमीन-आसमान का अंतर है. इस अंतर के लिए सरकार […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 22, 2015 5:14 AM
देश की गरीब जनता अपने बच्चों का भविष्य संवारने के लिए पढ़ाई कराने के लिए सरकारी स्कूलों में भेजती है. लेकिन सरकार की गलत नीतियां ही उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही हैं.
सरकारी और निजी स्कूलों में होनेवाली पढ़ाई की तुलना की जाये, तो जमीन-आसमान का अंतर है. इस अंतर के लिए सरकार की लचीली और गलत नीतियां ही जिम्मेदार हो सकती हैं.
सरकारी स्कूलों में होनेवाली पढ़ाई पर यदि हम गौर करें, तो कक्षा एक से पांच तक की पाठ्य पुस्तक पढ़ने लायक ही नहीं हैं, जो बच्चों की नींव तैयार कर सकें. अत: ये पाठ्य पुस्तक निजी स्कूलों जैसी होनी चाहिए. दूसरी बात, स्कूलों में शिक्षकों की कमी तो है ही, लेकिन जो भी शिक्षक हैं, वे अपने गुरु के दायित्व का पालन नहीं कर रहे हैं.
सबसे बड़ी बात यह कि स्कूलों के शिक्षकों में गुरु और शिष्यों के बीच का फर्क ही पता नहीं है. उनका मतलब सिर्फ सरकारी कर्मचारियों की तरह वेतन पाने से ही है. तीसरी बात यह कि शहरी इलाकों के शिक्षकों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों के शिक्षकों में कार्य कुशलता की कमी है.
एक और अहम बिंदु पर अगर ध्यान दिया जाये, तो सरकार ने सरकारी स्कूलों को पाठशाला के बजाय पाकशाला बना कर रख दिया है. रही बात स्कूलों में बच्चों के ठहराव की, तो निजी स्कूलों में कौन-सी एमडीएम योजना है, जहां बच्चों का ठहराव शत-प्रतिशत है. अगर सरकार खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू कर दे और एमडीएम योजना को बंद कर दे, तो निश्चित तौर पर सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का माहौल बनेगा और भ्रष्टाचार भी कम होगा.
अगर सरकार चाहे, तो सरकारी विभाग और खास कर शिक्षा विभाग के कर्मचारियों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ें, तो पढ़ाई के स्तर में बदलाव निश्चित है.
परितोष कुमार सेन, नोनीहाट, दुमका

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