वक्त बदला, वक्त का मिजाज बदला

तरुण विजय राज्यसभा सांसद, भाजपा जैसे अंधेरे में डूबा देश अचानक सूर्याेदय देख आंखें मिचमिचाने लगे, ऐसे हताशा में डूबे भारत के क्षितिज पर मोदी के उदय का असर हुआ. देश के माहौल से और जनसंवाद की भीड़ से भ्रष्टाचार, घोटाले, मंत्रियों के जेल जाने जैसे शब्द और खबरें गायब हो गयीं. 21 मई, 2014 […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 22, 2015 5:19 AM
तरुण विजय
राज्यसभा सांसद, भाजपा
जैसे अंधेरे में डूबा देश अचानक सूर्याेदय देख आंखें मिचमिचाने लगे, ऐसे हताशा में डूबे भारत के क्षितिज पर मोदी के उदय का असर हुआ. देश के माहौल से और जनसंवाद की भीड़ से भ्रष्टाचार, घोटाले, मंत्रियों के जेल जाने जैसे शब्द और खबरें गायब हो गयीं.
21 मई, 2014 को जब नरेंद्र भाई मोदी पहली बार लोकसभा पहुंचे, तो देहरी पर माथा टिका कर संसद भवन में प्रवेश किया. यह वह क्षण था, जब देश का वक्त बदल गया और वक्त का मिजाज बदल गया. विश्व के इतिहास में यह अनूठी घटना है कि जो व्यक्ति भाजपा संगठन तथा गुजरात के शासन में महत्वपूर्ण और शिखर पदों पर रहे, वह कभी लोकसभा या संसद में सामान्य रीति से मिलने या सदन देखने आये ही नहीं थे और जब जीवन में उन्होंने पहली बार संसद में प्रवेश किया तो देश के प्रधानमंत्री के रूप में.
यह केवल नरेंद्र मोदी के भाग्योदय से जुड़ा क्षण नहीं था, बल्कि मैं इसे भारत के भाग्योदय से जुड़ा क्षण मानता हूं, जब भारतीय लोकतंत्र की गरिमा और भारत के अत्यंत साधारण जन की प्रतिष्ठा बढ़ी.
लेकिन, यह विडंबना ही है कि जन स्मृति समय के साथ कितनी कमजोर और कितनी धूमिल हो जाती है. यह वही देश है, जिसे अब से एक साल पहले तक सारी दुनिया में सबसे भ्रष्ट और महिलाओं के लिए बेहद असुरक्षित देश माना जाता था. जहां के अखबार हर दिन एक नये घोटाले, एक नये भ्रष्ट कांड और किसी मंत्री के जेल जाने या उसके विरुद्ध जांच होने की खबर लिए छपते थे.
प्रधानमंत्री पद पर बैठा व्यक्ति वास्तव में प्रधानमंत्री नहीं था और जो उस पद पर नहीं बैठा था, वह प्रधानमंत्री की भूमिका निभा रहा था! देश में नेतृत्व का संकट नहीं था, लेकिन सरकार की विश्वसनीयता का ऐसा संकट पैदा हो गया था कि बाहरी और आंतरिक सुरक्षा के खतरे बढ़ गये.
जैसे अंधेरे में डूबा देश अचानक सूर्याेदय देख आंखें मिचमिचाने लगे, ऐसे हताशा में डूबे भारत के क्षितिज पर मोदी के उदय का असर हुआ. पहली बार देश के माहौल से और जनसंवाद की भीड़ से भ्रष्टाचार, गबन, घोटाले, मंत्रियों के जेल जाने जैसे शब्द और वैसी खबरें गायब हो गयीं और गांधी की वाणी कुछ यूं जिंदा हुई कि जो राष्ट्रीय अभियान कभी किसी ने इस स्तर पर सोचे ही नहीं थे, वैसे स्वच्छता और शौचालय बनाने के अभियान प्रधानमंत्री स्तर के व्यक्ति ने घोषित किये.
एक साल से भी कम समय में विद्यालयों, सार्वजनिक स्थानों और विशेषकर बच्चियों के लिए 31 लाख से ज्यादा शौचालय बन कर तैयार हो गये, तो दुनिया ने आश्चर्य से दांतों तले अंगुली दबा ली.
संसद के कामकाज पर जो टिप्पणियां होती थीं, वे याद हैं क्या? पिछले 15 वर्षो के इतिहास में संसदीय कामकाज का रिकार्ड यह रहा है कि लोकसभा का अधिकतम कामकाज 56 प्रतिशत और राज्यसभा का 58 प्रतिशत के आसपास ही रहा. कहानियां और चुटकुले बनते थे कि बच्चों को संसद देखने मत भेजना, वे बिगड़ जायेंगे. सांसद तो संसद में सिर्फ सब्सिडी वाला खाना खाते हैं, काम कहां करते हैं?
उसी संसद में मोदी सरकार आने के बाद लोकसभा का कामकाज 103 प्रतिशत से 123 प्रतिशत तक पहुंचा और राज्यसभा, कांग्रेस की तमाम जिदों और कामकाज न होने देने के संकल्प के बावजूद, भी 101 प्रतिशत काम का कीर्तिमान स्थापित करने में सफल हुई. दोनों सदनों द्वारा 16 कानून पास किये गये और 20 नये विधेयक प्रस्तुत किये गये. पहली बार यह भी हुआ कि जनहित के काम और कानूनों का पारित किया जाना पूरा करने के लिए लोकसभा का सत्र तीन दिन बढ़ाया गया.
रक्षा के मामले में रोज खबरें छपती थीं कि हमारे सैनिकों के पास हथियारों की उपलब्धता और हमारी रक्षा तैयारी पर्याप्त नहीं है. मोदी सरकार के आते ही रक्षा मंत्री मनोहर र्पीकर के नेतृत्व में एक लाख करोड़ रुपये से अधिक के रक्षा सौदों को मंजूरी दी गयी.
प्रधानमंत्री मोदी के चीन जाने से कुछ घंटे पहले ही उन्होंने 65 हजार मीट्रिक टन भारी नये भारतीय युद्धक नौसैनिक पोत ‘विशाल’ के लिए 25 हजार करोड़ रुपये की मंजूदी दी. जिस चीन को प्रतिस्पद्र्धी और शत्रु माना जाता था, उसी चीन ने भारत के प्रधानमंत्री का इतना शानदार और सार्वजनिक सम्मान किया जो आज तक भारत के किसी प्रधानमंत्री को नहीं मिला. चीन के साथ 27 अरब डॉलर के व्यापार समझौते अलग हुए.
प्रधानमंत्री जन-धन योजना ने तो कमाल ही कर दिया. लद्दाख से लेकर अंदमान-निकोबार तक लाखों ऐसी महिलाओं और युवाओं ने खाते खोले, जिन्होंने जीवन में कभी हस्ताक्षर नहीं किये थे. सात करोड़ नये बैंक खाते खुले और सिर्फ दो महीने में पांच हजार करोड़ जमा हुए.
करोड़ों लोगों को एक लाख रुपये का दुर्घटना बीमा तथा पांच हजार रुपये के ओवरड्राफ्ट की सुविधा अचानक मिली. पहली बार देश के इतिहास में किसानों और मजदूरों को पेंशन की सुविधा मिली, वह भी सिर्फ 33 रुपये वार्षिक के प्रीमियम के जरिये. लेकिन, प्रधानमंत्री मोदी की मुकुटमणि गरीबों, किसानों, मजदूरों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की घोषणा है. उल्लेखनीय है कि देश की 80 प्रतिशत जनता अब भी बीमा के दायरे से बाहर है और सिर्फ 11 प्रतिशत कामगार पेंशन के अधिकारी बनाये गये हैं.
मोदी ने प्रधानमंत्री जीवन-ज्योति बीमा योजना के अंतर्गत 330 रुपये सालाना प्रीमियम पर दो लाख रुपये का बीमा दिया है. और प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना में सिर्फ 12 रुपये वार्षकि प्रीमियम देकर दुर्घटना या मृत्यु की स्थिति में दो लाख रुपये तथा आंशिक या स्थायी विकलांगता होने पर एक लाख रुपया तुरंत मिलेगा. इतना ही नहीं, मोदी सरकार ने असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए भी असाधारण अटल पेंशन योजना लागू की है.
मुख्य बात है कि देश का नेतृत्व स्थापित हुआ और दुनिया में भारत की महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज हुई. आज वैश्विक परिस्थिति में विदेश नीति सीधे-सीधे स्वदेश के आर्थिक और सुरक्षा समीकरणों को प्रभावित करती है.
अमेरिका, इजरायल और जापान से यदि भारत को महत्वपूर्ण रक्षा उपकरण, हथियार तथा युद्धक विमान और उसकी टेक्नोलॉजी मिल रही है, तो फ्रांस से दुर्लभ परमाणु सहयोग और कनाडा से यूरेनियम की आपूर्ति के समझौते हुए हैं. नरेंद्र मोदी की हर विदेश यात्रा ने स्वदेश के हितों को साधा है. प्रधानमंत्री ने विदेश नीति के मामले में उन आलोचकों को पूरी तरह गलत साबित किया है, जिन्हें इस महत्वपूर्ण मोर्चे पर उनकी अनुभवहीनता को लेकर आशंका थी.
इस तरह पिछला एक साल भारत के वक्त बदलने और उस वक्त का मिजाज बदलनेवाला रहा. विपक्ष की राजनीति बरकरार रहे, लेकिन अगर भारत बढ़ता है तो उस खुशी में सबकी साङोदारी होती ही है.

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