अमेरिकी मंसूबों पर रूसी ब्रेक!

मध्य-पूर्व को एक मायने में दुनिया की धुरी कहा जा सकता है. सिर्फ इसलिए नहीं कि यहां से निकलनेवाले तेल से दुनिया का पहिया घूमता है, बल्कि इसलिए भी कि मध्य-पूर्व पिछले कम से कम दो दशकों से अंतरराष्ट्रीय भू-राजनीति के केंद्र में है. शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद अमेरिका ने जिस एकध्रुवीय विश्व का […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 16, 2013 2:12 AM

मध्य-पूर्व को एक मायने में दुनिया की धुरी कहा जा सकता है. सिर्फ इसलिए नहीं कि यहां से निकलनेवाले तेल से दुनिया का पहिया घूमता है, बल्कि इसलिए भी कि मध्य-पूर्व पिछले कम से कम दो दशकों से अंतरराष्ट्रीय भू-राजनीति के केंद्र में है. शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद अमेरिका ने जिस एकध्रुवीय विश्व का सपना पाला, मध्य-पूर्व उस सपने की प्रयोगशाला बना. इस सपने को विस्तार देने की कोशिशें आज भी जारी हैं.

पिछले महीने 21 अगस्त को सीरिया में रासायनिक हथियार के इस्तेमाल की खबरों के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा सीरिया को सबक सिखाने के लिए जिस तरह आतुर नजर आ रहे थे, उसमें इस तथ्य को पढ़ा जा सकता है. उनका तर्क पुराना था- सीरिया के पास जन-संहार के हथियारों का जखीरा है, जो मध्य-पूर्व के लिए ही नहीं, पूरी दुनिया की सुरक्षा के लिए खतरा है. लेकिन, ऐसा प्रतीत होता है कि रूसी कूटनीति के कारण फिलहाल मध्य-पूर्व एक और युद्ध में झुलसने से बच गया है. जेनेवा में रूस और अमेरिका ने मिल कर सीरिया के रासायनिक हथियारों के जखीरे को समाप्त करने के एक ऐतिहासिक समझौते पर अपनी सहमति जता दी है.

इस समझौते के मुताबिक सीरिया को अगले साल के मध्य तक अपने रासायनिक हथियारों के जखीरे को पूरी तरह से नष्ट करना होगा. सीरिया को एक हफ्ते के भीतर अपने रासायनिक हथियारों को अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के हवाले करना होगा. हालांकि, यहां यह ध्यान रखना जरूरी है कि सीरिया का असल संकट वहां जारी गृह-युद्ध है, जिसमें हजारों जानें गयी हैं और लाखों लोगों को शरणार्थी बनने पर मजबूर होना पड़ा है.

गौरतलब है कि एक तरफ रूस सीरिया की तानाशाही असद सरकार को अस्त्रों की आपूर्ति कर रहा है, वहीं विद्रोहियों को अमेरिका का समर्थन मिल रहा है. सीरिया में जारी गृह युद्ध के समाधान का कोई खाका अभी तक किसी के पास नहीं है. बहरहाल, जेनेवा में हुए रूस-अमेरिका समझौते में हम इतिहास का एक चक्र पूरा होते जरूर देख रहे हैं. सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी वर्चस्ववादी मंसूबों में जिस तरह से उफान आया था, उसे रूस की मजबूत पहल ने फिलहाल एक बार शांत कर दिया है. इसे विश्व इतिहास की एक बड़ी घटना माना जा सकता है.

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