खतरे में है देश के गांवों का अस्तित्व

भारत गांवों का देश है. गांवों की एक अलग ही बात होती है, जिसके चलते सभी लोगों का अपने गांव से एक खास लगाव होता है. परंतु विकास के नाम पर और आधुनिकीकरण की होड़ में गांवों का अस्तित्व अब खतरे में पड़ता जा रहा है. लोग अपने गांवों को स्वच्छ, समृद्ध और सुविकसित बनाने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 25, 2015 5:14 AM
भारत गांवों का देश है. गांवों की एक अलग ही बात होती है, जिसके चलते सभी लोगों का अपने गांव से एक खास लगाव होता है. परंतु विकास के नाम पर और आधुनिकीकरण की होड़ में गांवों का अस्तित्व अब खतरे में पड़ता जा रहा है. लोग अपने गांवों को स्वच्छ, समृद्ध और सुविकसित बनाने के स्थान पर शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं.
एक ओर जहां गांव शांति और सुकून के लिए जाना जाता था, वहीं, आज देश के गांव जीवन की बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित है. गांव तक पहुंचने के लिए सड़कों का अभाव, कच्चे मकान, जलस्नेतों की समस्याएं, शौचालयों का अभाव, स्कूल, अस्पताल और अन्य आवश्यक सुविधाओं से वंचित गांवों में आज लोग निवास करना पसंद नहीं करते हैं.
गांवों का बसेरा प्रकृति की गोद में होता है, लेकिन वहां शहरीकरण की होड़ मची है और प्राकृतिक संसाधनों का भरपूर दोहन होने के साथ ही वनों की कटाई, जमीनों की अंधाधुंध बिक्री कर इमारतों का निर्माण आदि का काम चल रहा है. शांति के स्थल में कोलाहल भरता चला जा रहा है. गांवों का मूल प्राकृतिक स्वरूप ही पूरी तरह नष्ट हो गया है. वह न तो पूरी तरह शहर ही रह गया है और न ही गांव.
इतना ही नहीं, गांवों की परंपराएं और रस्में भी लुप्त होती जा रही हैं. आवश्यकता इस बात की है कि गांवों की अपनी मूल भावना को अक्षुण्ण रखते हुए गांवों का विकास हो. कृषि के प्रति लोगों की रुचि जगाने की जरूरत है और कृषि उत्पादों पर सरकारी सब्सिडी बढ़ा कर पलायन को रोका जा सकता है. सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा गांवों को विकसित करने पर जोर दिया जाना चाहिए. सरकार को चाहिए कि वह गांवों को उसके मूल स्वरूप को बरकरार रखते हुए उसका विकास कराये.
मनोज आजिज, जमशेदपुर

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