जल संकट हमारे अस्तित्व पर खतरा

हम पानी के बिना धरती पर जीवन की कल्पना नहीं कर सकते. प्रकृति ने पानी की पर्याप्त उपलब्धता भी सुनिश्चित की है, लेकिन सभ्यता के विकास ने इसकी आपूर्ति और मांग के बीच एक खाई बना दी है. न सिर्फउपभोग बढ़ता जा रहा है, बल्किसमुचित प्रबंधन की कमी और लापरवाही से हम पानी बर्बाद भी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 25, 2015 5:15 AM
हम पानी के बिना धरती पर जीवन की कल्पना नहीं कर सकते. प्रकृति ने पानी की पर्याप्त उपलब्धता भी सुनिश्चित की है, लेकिन सभ्यता के विकास ने इसकी आपूर्ति और मांग के बीच एक खाई बना दी है. न सिर्फउपभोग बढ़ता जा रहा है, बल्किसमुचित प्रबंधन की कमी और लापरवाही से हम पानी बर्बाद भी कर रहे हैं.
प्रतिष्ठित सलाहकार संस्था इए वाटर ने अपने ताजा अध्ययन में बताया है कि आगामी एक दशक में भारत को भयानक जल-संकट का सामना करना पड़ सकता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के विकास से पानी की मांग भी तेजी से बढ़ रही है, जो 2025 तक आपूर्ति के मौजूदा स्रोतों की क्षमता से अधिक हो जायेगी. देश में 70 फीसदी सिंचाई तथा 80 फीसदी घरेलू उपभोग भूमिगत जल पर निर्भर है.
इस कारण इस भंडार के क्षरण की गति भी तेज है. यह तथ्य भी महत्वपूर्ण है कि देश की करीब 80 फीसदी आबादी भोजन और जीवन-यापन के लिए 14 बड़ी निदयों पर निर्भर है. दशकों से हमारी जल-नीतियों का मुख्य ध्यान संरक्षण और संवर्धन पर न होकर पानी के अत्यधिक उपभोग पर है. हमारे पास प्रकृति-प्रदत्त व्यापक भूमिगत जल-भंडार होने के अलावा भारतीय उपमहाद्वीप में सात बड़े नदी तंत्र और 400 से अधिक नदियां हैं. झरनों और झीलों की बहुतायत है. लेकिन हमने उन्हें अपने अस्तित्व के लिए बेहद जरूरी धरती के वृहत पर्यावरणकि व्यवस्था के प्रमुख अंग के रूप में देखने के बजाए उन्हें महज पानी आपूर्ति केंद्र, ऊर्जा स्रोत और शहरों की नालियों के निकास के रूप में देखा है.
खेती, खनन और निर्माण में संतुलित समझ के अभाव ने न सिर्फ हमें जल-संकट के कगार पर ला खड़ा किया है, बल्कि खाद्यान्न और स्वास्थ्य से संबंधित चुनौतियां भी सामने आ रही हैं. कुछ दिन पूर्व विश्व आर्थिक फोरम ने भी पानी की कमी को प्रमुखता से चिन्हित किया गया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन में 80 फीसदी बीमारियों का कारण असुरक्षित और दूषित पेयजल को माना गया है.
आपूर्ति और दूषित जल प्रबंधन के क्षेत्र में अगले कुछ सालों में 13 बिलियन डॉलर के निवेश तथा गंगा सफाई परियोजना, स्मार्ट शहर योजना और स्वच्छ भारत अभियान से काफी उम्मीदें हैं, लेकिन इस संकट के समाधान के लिए सरकारों और समाज को निरंतर सजग रहने की आवश्यकता है.

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