विरूपण एक लत भी बन सकती है

एमजे अकबर प्रवक्ता, भाजपा विरूपण आसानी से उलटा परिणाम देनेवाली एक लत बन सकता है. रक्षा बलों में एक रैंक-एक पेंशन को एक दशक तक ठुकरानेवाली कांग्रेस अब उस बच्चे का बाप होने का दावा करने लगी है, जो आज पैदा हुआ है. सैनिक अंधे नहीं हैं. स्पष्ट रूप से अपनी बात कहनेवाला एक ऐसा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 25, 2015 5:16 AM
एमजे अकबर
प्रवक्ता, भाजपा
विरूपण आसानी से उलटा परिणाम देनेवाली एक लत बन सकता है. रक्षा बलों में एक रैंक-एक पेंशन को एक दशक तक ठुकरानेवाली कांग्रेस अब उस बच्चे का बाप होने का दावा करने लगी है, जो आज पैदा हुआ है. सैनिक अंधे नहीं हैं.
स्पष्ट रूप से अपनी बात कहनेवाला एक ऐसा राजनेता है जो राजनीतिक सत्ता पर कॉरपोरेट प्रभाव के बारे में बहुत कुछ जानता है, भले ही वह अपनी इस क्षमता को स्वीकार करे या न करे. जब डॉ मनमोहन सिंह ने अपनी कैबिनेट में मणि शंकर अय्यर को पेट्रोलियम एवं गैस मंत्रलय की जिम्मेवारी दी थी, तो वे इस विभाग में एक त्वरित ऊर्जा, उद्देश्य व दिशा लेकर आये थे.
अचानक एक झटके में, कुछ समय के बाद अय्यर बाहर कर दिये गये. उन्हें मंत्रलय से बाहर नहीं किया गया, और यह बहुत खराब भले ही न लगे, परंतु उन्हें उनकी जगह दिखा दी गयी थी और वह जगह पेट्रोलियम से बहुत दूर थी. ऐसा क्यों हुआ था?
अय्यर तत्कालीन सरकार के सबसे अच्छे मंत्रियों में से थे. हालांकि जहां तक कांग्रेस नेतृत्व का सवाल है, उसके साथ एक समस्या थी: वे गैस सेक्टर में व्यापारिक हित रखनेवाले एक अत्यधिक शक्तिशाली उद्योगपति से कोई दिशा-निर्देश लेने के लिए तैयार नहीं थे.
वर्ष 2004 से 2014 तक के कांग्रेस शासनकाल में पूंजीपतियों के साथ सांठ-गांठ और अनुचित कॉरपोरेट प्रभाव का यह एकमात्र उदाहरण नहीं है. हम सभी यह जानते हैं कि जनता बहुत जल्दी चीजें भूल जाती है, परंतु इससे तथ्यों का महत्व कम नहीं हो जाना चाहिए. क्या आपको राडिया टेप प्रकरण याद है, जब व्यापारिक लॉबियों की इच्छा के अनुसार 2009 में मंत्रलय बांटे जा रहे थे और तब सोनिया और राहुल गांधी का आदेश सर्वोच्च हुआ करता था? प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी के एक साल का आकलन अखबारों में हो रहा है.
व्यापारिक अखबारों ने कई बार इस बात को रेखांकित किया है कि दिल्ली के सत्ता के गलियारों में वातावरण बदल गया है. पहले की तरह अब उद्योगपति दिखाई नहीं पड़ते और लॉबिंग करनेवाले 10 साल तक, जब भ्रष्टाचार सरकार में उच्च पदों पर बैठे लोगों द्वारा पोषित होता था और फिर जीरो-लॉस के सिद्धांत से उसका बचाव किया जाता था, अच्छा धंधा करने के बाद अब मंदी से जूझ रहे हैं. पिछले 12 महीनों में मोदी ने यह साबित किया है कि सरकार भ्रष्टाचार को एकदम बर्दाश्त नहीं करने के सिद्धांत पर भी चलायी जा सकती है. इस बात का सबूत भी है.
एक समय उपहार की तरह बांटी गयी कोयला खदानों में 10 फीसदी की नीलामी में ही सरकारी खजाने को दो लाख करोड़ रु पये मिले हैं. इससे पहले जिस प्रकार की लूट चल रही थी, उसके बारे में सोच कर ही दिमाग घूमने लगता है. फिर राहुल गांधी ने इस सफेद झूठ को गढ़ने में इतना सर क्यों खपाया कि एनडीए सरकार कॉरपोरेट के करीब है?
इसका पहला कारण तो बिलकुल ही साफ है. इतने समय से अभूतपूर्व भ्रष्टाचार में लिप्त रहने के बाद कांग्रेस अपनी छवि में सुधार के लिए बेचैन है. दूसर कारण कुछ जटिल है. राहुल गांधी 1960 और 1970 के दशकों में प्रचलित जुमलों को सिर्फ दुहराने की कोशिश कर रहे हैं. उस समय निजी क्षेत्र को नागरिकों का खून चूस कर अपना पेट भरनेवाला कह कर भला-बुरा बोलने की परिपाटी थी. यह बकवास उन बचकाना दिमागों की पैदाइश थी, जिन पर रटे-रटाये छद्म मार्क्‍सवादी बातों का असर था.
विडंबना यह है कि भारतीय अब वह उत्पाद नहीं खरीदते हैं जिसकी बेचने की अंतिम तारीख निकल चुकी होती है. साम्यवाद के महान ठिकाने चीन में भी ऐसा नहीं होता. भारत की आर्थिक समझ परिपक्व हो चुकी है. सरकारी और निजी क्षेत्रों को समान मूल्यों पर ही काम करना होगा : तौर-तरीकों में ईमानदारी तथा लेखा-जोखा में जवाबदेही. दोनों के लिए भ्रष्टाचार या बर्बादी के लिए कोई मौका नहीं है. कांग्रेस ने गरीबों को ठगने के लिए एक युद्ध-सा छेड़ दिया है. सौभाग्य से, गरीबों के पास समझदारी का बड़ा संसाधन है. उन्हें पता है कि कांग्रेस के एक दशक के शासनकाल में उन्हें किसने लूटा था.
उन्हें किसी सरकार का आकलन करना भी आता है.वे जन-धन योजना का समर्थन करेंगे क्योंकि गांवों में खादी उत्पादन योजना के लिए आवंटन, एक उदाहरण के रूप में, उनके पास उनके नये खातों के जरिये ही पहुंचता है. उन्हें सांस्थानिक भ्रष्टाचार के कई स्तरों से होकर अपना पैसा नहीं पाना है जिसमें एक रु पये का आवंटन उन तक पहुंचते-पहुंचते 15 पैसा हो जाता है. गरीब लोग मोदी सरकार की सामाजिक सुरक्षा योजना का समर्थन करेंगे क्योंकि उसमें नाम-मात्र के भुगतान पर उन्हें दो लाख रु पये का जीवन बीमा और उससे भी कम भुगतान पर दुर्घटना बीमा मिलता है.
विरूपण बहुत आसानी से उलटा परिणाम देनेवाली एक लत बन सकता है. रक्षा बलों में एक रैंक-एक पेंशन को एक दशक तक ठुकरानेवाली कांग्रेस अब उस बच्चे का बाप होने का दावा करने लगी है, जो आज पैदा हुआ है. सैनिक अंधे नहीं हैं. विरूपण एक ऐसी लत बन गया है कि बहुत ही जल्दी वह समय भी आयेगा जब लोग कांग्रेसी नेताओं की सही बात पर भी भरोसा करना छोड़ देंगे.

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