डिजिटल रनवे से गांवों का टेकऑफ

शालू यादव बीबीसी संवाददाता, दिल्ली मुङो याद है, करीब दस साल पहले जब मेरे माता-पिता ने मुङो कंप्यूटर दिलवाया था तो मुङो ऐसा लगा जैसे मैं दिल्ली के उस ‘एलीट क्लब’ का हिस्सा बन गयी थी, जिसे एक बटन के क्लिक से दुनिया से जुड़ने का भाग्य प्राप्त है. गरमी की छुट्टियों में गांव से […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 26, 2015 5:05 AM

शालू यादव

बीबीसी संवाददाता, दिल्ली

मुङो याद है, करीब दस साल पहले जब मेरे माता-पिता ने मुङो कंप्यूटर दिलवाया था तो मुङो ऐसा लगा जैसे मैं दिल्ली के उस ‘एलीट क्लब’ का हिस्सा बन गयी थी, जिसे एक बटन के क्लिक से दुनिया से जुड़ने का भाग्य प्राप्त है.

गरमी की छुट्टियों में गांव से जब मेरे चचेरे और ममेरे भाई-बहन आते, तो कंप्यूटर देख कर उनकी आंखों में एक ललक सी जाग जाती थी. लेकिन, अब समय बदल गया है. आज गांव में रहते हुए भी उनके पास पर्सनल लैपटॉप हैं.

ग्रामीण और शहरी भारत के बीच के डिजिटल फासले का जायजा लेने के लिए मैंने भारत के तीन राज्यों का दौरा किया-राजस्थान का चंदौली गांव, केरल का इड्डकी जिला और मध्य प्रदेश का चंदेरी कस्बा. इन यात्राओं के दौरान मैंने जो देखा और पाया, उससे मेरा पूर्वाग्रह दूर हो गया.

दिल्ली से राजस्थान की ओर बढ़ते हुए ऊंची-ऊंची कॉरपोरेट इमारतें दिखायी देती हैं और फिर उसके कुछ ही किलोमीटर बाद खेतों के बीच खड़े कच्चे मकान. गांव की इस मूक सी तसवीर को देख कर यह नहीं लगता कि यहां इंटरनेट के बारे में किसी को पता भी होगा, लेकिन मैं शायद अब भी दस साल पहले की दुनिया में जी रही थी. अलवर के चंदौली गांव में जाकर पता चला कि यहां तो बच्चा-बच्चा इंटरनेट और स्मार्टफोन के बारे में जानता है.

10-15 साल के बच्चों का आत्मविश्वास भरा कंप्यूटर और इंटरनेट ज्ञान देख कर मुङो एहसास हुआ कि इस उम्र में इतना आत्मविश्वास तो मुङो शहरों में भी नहीं मिल पाया था. जब मैंने गांव के बच्चों को इंस्टाग्राम, फेसबुक, ट्विटर, जी-मेल व यू-ट्यूब का इस्तेमाल करते हुए देखा, तो आभास हुआ कि ग्रामीण भारत का भविष्य कितना अलग होने जा रहा है.

वहीं केरल के इड्डकी जिले के एक छोटे से गांव में एक अनपढ़ आदिवासी ने जब मेरे आइ-फोन पर गूगल मैप्स चला कर दिखाया, तो मुङो विश्वास नहीं हुआ कि स्मार्टफोन के इस्तेमाल के बारे में लोग खुद ही अपने आप को शिक्षित कर रहे हैं.

मध्य-प्रदेश के चंदेरी में जहां कुछ साल पहले बुनकर अपना अस्तित्व खो चुके थे, आज वे फेसबुक और व्हाट्सएप्प के जरिये ऑनलाइन साड़ियां बेच कर खूब मुनाफा कमा रहे हैं. और फिर गांवों के ऐसे नौजवानों से भी मिली जो ऑनलाइन शॉपिंग करते हैं और इसे एक बेहद मामूली योग्यता मानते हैं.

भारत की आधी से ज्यादा आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है और जैसे-जैसे इस आबादी में स्मार्टफोन का इस्तेमाल बढ़ रहा है, वैसे-वैसे उनकी उम्मीदें भी बढ़ रही हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गांवों में मुफ्त इंटरनेट पहुंचाने के वादे को पूरा ग्रामीण भारत बहुत गंभीरता से ले रहा है. गांव के लोग चाहते हैं कि गांव-शहर के बीच का डिजिटल भेदभाव अब खत्म हो. गांवों में इंटरनेट की भूख बहुत है, लेकिन उस भूख को मिटाने के लिए कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं है.

हालांकि, एक नौजवान लड़की पूछती है, ‘इंटरनेट तो आ ही जायेगा गांव में, लेकिन गांव वालों की सोच कौन बदलेगा? यहां तो हम लड़कियों के फेसबुक अकाउंट खोलने पर ही बवाल मच जाता है.’

(बीबीसी हिंदी से साभार)

Next Article

Exit mobile version