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महंगाई घटी, पर सिर्फ आंकड़ों में

सत्ता में साल भर पूरा करनेवाली मोदी सरकार अपनी उपलब्धियों की फेहरिश्त में महंगाई में कमी का भी उल्लेख कर रही है. आंकड़ों में यह बात काफी हद तक सही भी दिखती है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक उपभोक्ता मूल्यों से जुड़ी महंगाई अप्रैल महीने में 4.87 फीसदी तक आ गयी थी, जो पिछले चार महीने […]

सत्ता में साल भर पूरा करनेवाली मोदी सरकार अपनी उपलब्धियों की फेहरिश्त में महंगाई में कमी का भी उल्लेख कर रही है. आंकड़ों में यह बात काफी हद तक सही भी दिखती है.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक उपभोक्ता मूल्यों से जुड़ी महंगाई अप्रैल महीने में 4.87 फीसदी तक आ गयी थी, जो पिछले चार महीने में सबसे कम है. इसी तरह थोक मूल्यों से संबंधित महंगाई दर छह महीने से शून्य के नीचे है. लेकिन, आम उपभोक्ताओं को इसका लाभ उस हिसाब से नहीं मिल पा रहा है. यह ठीक है कि कुछ खाद्य पदार्थो के दाम स्थिर हैं या कम भी हुए हैं, पर रोजमर्रा की कई जरूरी चीजों की कीमतों में उछाल देखने को मिल रहा है.
पिछले कुछ महीनों में दालों की कीमतें बेतहाशा बढ़ी हैं. पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में दालें 25 से 50 फीसदी तक महंगी हो गयी हैं. कहीं-कहीं तो यह उछाल करीब 65 फीसदी तक बताया जा रहा है. बाजार के जानकारों के मुताबिक मौजूदा फसल वर्ष में सामान्य से कम मॉनसून तथा बेमौसम की बारिश जैसे कारक इस तेजी का कारण हैं.
इस वर्ष दलहन उत्पादन करीब एक करोड़ 84 लाख टन रहने का अनुमान है, जबकि पिछले वर्ष यह एक करोड़ 97 लाख टन से अधिक रहा था. उल्लेखनीय है कि घरेलू मांग पूरा करने के लिए बड़ी मात्र में दाल का आयात भी करना पड़ता है. उधर, देश के अनेक हिस्सों में सब्जियों की कीमतें भी पिछले एक साल में 10 से 40 फीसदी तक बढ़ी हैं. अप्रैल के शुरू में आयी एसोचैम और स्काइमेट वेदर की रिपोर्ट में अगले कुछ महीनों में सब्जियों के दाम 20 से 25 फीसदी तक बढ़ने का अनुमान लगाया गया था.
संकेत हैं कि बरसात में महंगाई और बढ़ सकती है तथा अन्य खाद्य पदार्थों पर भी इसका असर हो सकता है. इन तथ्यों के साथ पेट्रोल-डीजल की कीमतों में वृद्धि को जोड़ें, तो निष्कर्ष यही निकलता है कि इस मोरचे पर सरकार का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा है.
जरूरी चीजों की कीमतें बढ़ने का सर्वाधिक असर गरीब और निम्न मध्यवर्गीय तबके पर पड़ता है. दाल व सब्जियां हमारे भोजन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. उम्मीद है कि साल पूरा होने के जश्न से फुरसत होने के बाद सरकार जमाखोरी पर अंकुश और जरूरत के मुताबिक आयात के जरिये कीमतों को काबू में रखने की गंभीर कोशिश करेगी.

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