प्रकृति को दरकिनार कर उन्नति असंभव

मात्र ढाई साल पहले जापान की आबादी का एक हिस्सा तबाही की चपेट में आया था, जब 11 मार्च 2011 को भूकंप के बाद भयंकर सुनामी के थपेड़ों ने हमला किया. उसके पहले दक्षिण भारत भी सुनामी की चपेट में आया था और जान–माल की भारी क्षति हुई थी. एक चीज पर गौर फरमायें, तो […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 17, 2013 4:43 AM

मात्र ढाई साल पहले जापान की आबादी का एक हिस्सा तबाही की चपेट में आया था, जब 11 मार्च 2011 को भूकंप के बाद भयंकर सुनामी के थपेड़ों ने हमला किया. उसके पहले दक्षिण भारत भी सुनामी की चपेट में आया था और जानमाल की भारी क्षति हुई थी.

एक चीज पर गौर फरमायें, तो समझ में आयेगा की जनहानि सीधेसीधे जनसंख्या के घनत्व पर निर्भर करती है, यानी घनी आबादी पर मार भी ज्यादा पड़ेगी. जनहीन अलास्का या अंटार्टिका पर कुछ कहर आता भी होगा तो कुछेक लोगों को तबाह करके जाता होगा.

पर आंध्र या भुज में भूकंप जाये तो नतीजे कितने भयंकर होते हैं! साफ है कि मानव की बढ़ती आबादी और विकास के ढर्रे को प्रकृति स्वीकार नहीं कर पा रही. प्रकृति को दरकिनार करते हुए, पर्यावरण को लहूलुहान करते हुए वह सिर्फ अपनी ही उन्नति देख रहा है.

डॉ हेम श्रीवास्तव, मेल से

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