हिंदी को सिर्फ हाट की भाषा न बनायें

।। विशाल दत्त ठाकुर ।। प्रभात खबर, देवघर अभी चंद दिनों पहले ही हमने हिंदी दिवस मनाया है. इस अवसर पर देशभर में कार्यक्रम आयोजित हुए. बड़े–बड़े विद्वानों ने हिंदी की दशा व दिशा पर बातें कीं. हिंदी में काम करने व कराने के लिए कसमें खायी गयीं. स्कूल, कॉलेज, बैंक, बीमा कार्यालय आदि में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 17, 2013 4:46 AM

।। विशाल दत्त ठाकुर ।।

प्रभात खबर, देवघर

अभी चंद दिनों पहले ही हमने हिंदी दिवस मनाया है. इस अवसर पर देशभर में कार्यक्रम आयोजित हुए. बड़ेबड़े विद्वानों ने हिंदी की दशा दिशा पर बातें कीं. हिंदी में काम करने कराने के लिए कसमें खायी गयीं.

स्कूल, कॉलेज, बैंक, बीमा कार्यालय आदि में अब भी हिंदी सप्ताह और हिंदी पखवारा चल रहा है. बस एक बार इन सबका खुमार उतर जाने दीजिए, फिर वही ढाक के तीन पात वाली स्थिति होगी. हिंदी को गद्दी से उतार कर उसकी औकात बता दी जायेगी. मतलब यह कि हिंदी की चिंदी उड़ेगी.

हम अपने बच्चों के लिए अंगरेजी स्कूल खोजेंगे, अंगरेजी में अरजी लिखने का अभ्यास करेंगे, किसी इंस्टीट्यूट में जाकर स्पोकन इंगलिश का कोर्स ज्वाइन कर अंगरेजी बोल पाने की अपनी कुंठा दूर करने में जुटेंगे. अंगरेजी लिखनेपढ़ने और बोलने में हम पूरी सावधानी बरतते हैं कि कहीं व्याकरण की गलती हो जाये.

उच्चारण देसी लगे. मतलब कि हम अंगरेजी के साथ हमेशा अदब से पेश आते हैं, उसका लिहाज करते हैं. लेकिन हिंदी के साथ हमारा अपनापन कुछ इस तरह जाग उठता है कि हम उसके साथ जैसा चाहे वैसा सलूक करने की छूट ले लेते हैं.

हमें गलत अंगरेजी बोलने में शर्म महसूस होती है, पर हिंदी का जनाजा हम पूरी बेशर्मी से निकालते हैं. अपनी भाषा है भाई, जैसे चाहे बोलो! पुंलिंग की जगह स्त्रीलिंग बोलो या इसका उल्टा, कोई क्या बिगाड़ लेगा?

बिहारझारखंड के दफ्तरों में हिंदी से ज्यादा दबदबा होता है भोजपुरी, अंगिका, खोरठा, मगही आदि स्थानीय बोलियों भाषाओं का. लेकिन, एक ही दफ्तर में अलगअलग बोलीभाषा बोलनेवाले होते हैं, इसलिए हिंदी के बिना काम चलना मुश्किल होता है. पर इस हिंदी की दुर्दशा देखने लायक होती है.

ठूसठूस कर स्थानीय शब्दों का प्रयोग और कभीकभी अपशब्दों का तड़का भी. कई कार्यालयों में आप गौर करेंगे, तो बड़ेबड़े अधिकारी भी अपने कर्मचारियों को निर्देश देते मिलेंगे कि वाला फाइल लाना जी, सामान यहां से हटाओ, कोंची कर रहे हो आदि आदि. बिहारझारखंड के कई मंत्रियों या नेताओं के भाषण की हिंदी भी कुछ इसी तरह की होती है.

आप अपनी स्थानीय बोलीभाषा से प्यार करें, उसका खूब प्रयोग करें, पर जब हिंदी बोलें, तो उसके सम्मान का भी ध्यान रखें. अंगरेजीभाषी देशों में भी कई तरह की अंगरेजी चलती है, पर लिखनेपढ़ने या औपचारिक प्रयोग में लोग मानक अंगेरजी का ही इस्तेमाल करते हैं.

पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान भाषा विज्ञान के शिक्षक की कही बात मुझे आज भी याद है कि हम जिस भाषा में हाट में सब्जी खरीदते हैं, उस भाषा का प्रयोग पढ़ाते समय या कार्यालयों में कतई नहीं कर सकते. भाषा से हमारे व्यक्तित्व का परिचय मिलता है, इसलिए हमें अपनी भाषा (हिंदी) सुधारनी चाहिए.

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