आपसी भाईचारे को तोड़ रहा जातिवाद

मैंने अपने जीवन में वर्तमान झारखंड प्रदेश के लगभग सभी जिलों के प्रखंडों और यहां तक कि गांवों में भी प्रवास किया है. गांव, कस्बा, नगर, महानगर का रहन-सहन, जीवन-यापन भी देखा है.असमानता भीर दिखी और सामाजिक समरसता का भी अभाव दिखा. यहां वैश्यों के एक समुदाय विशेष में आपसी भाईचारा नहीं दिखता है. एक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 29, 2015 5:04 AM

मैंने अपने जीवन में वर्तमान झारखंड प्रदेश के लगभग सभी जिलों के प्रखंडों और यहां तक कि गांवों में भी प्रवास किया है. गांव, कस्बा, नगर, महानगर का रहन-सहन, जीवन-यापन भी देखा है.असमानता भीर दिखी और सामाजिक समरसता का भी अभाव दिखा.

यहां वैश्यों के एक समुदाय विशेष में आपसी भाईचारा नहीं दिखता है. एक ही समुदाय के होने के बावजूद गोत्रों और स्थान विशेष के नाम पर एक-दूसरे में शादी-संबंध स्थापित नहीं किये जाते. कोई खुद को कान्यकुब्ज का निवासी कहता है, तो कोई खुद को गोड़ाई कहता है.

इस प्रकार के चार वर्गो में बंटे इस समुदाय में एक-दूसरे में शादी-संबंध स्थापित नहीं होता और न ही एक-दूसरे के कार्यक्रमों में भाग लेते हैं. इस प्रदेश में जातिवाद की इतनी गहरी पैठ है कि वह लोगों को आपस में जोड़ने के बजाये बांटने का काम अधिक कर रहा है.

स्वामी गोपाल आनंद, रजरप्पा पीठ

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