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कैंसर से मरते लोगों की चिंता कब होगी?

हृदय रोगों के बाद कैंसर दुनिया की सबसे बड़ी जानलेवा बीमारी है. शोधकर्ताओं के एक समूह की रिपोर्ट ‘ग्लोबल बर्डेन ऑफ कैंसर-2013’ के मुताबिक 1990 से 2013 के बीच कैंसर के मामलों में 30 फीसदी और इससे हो रही मौतों में 10 फीसदी की वृद्धि हुई है. जिन 188 देशों में यह शोध किया गया […]

हृदय रोगों के बाद कैंसर दुनिया की सबसे बड़ी जानलेवा बीमारी है. शोधकर्ताओं के एक समूह की रिपोर्ट ‘ग्लोबल बर्डेन ऑफ कैंसर-2013’ के मुताबिक 1990 से 2013 के बीच कैंसर के मामलों में 30 फीसदी और इससे हो रही मौतों में 10 फीसदी की वृद्धि हुई है.
जिन 188 देशों में यह शोध किया गया है, वहां हर तरह के कैंसर के रोगी बढ़े हैं. हालांकि अनेक देशों में इलाज और संरक्षण से मरनेवालों की संख्या घटी है, पर भारत समेत कुछ देशों में खराब स्वास्थ्य तंत्र के कारण मरनेवालों की संख्या में वृद्धि दर्ज की गयी है.
इतना ही नहीं, मुंह का कैंसर वैश्विक रूप से कैंसर के प्रमुख रूपों में शामिल नहीं है, पर भारत में यह कैंसर का दूसरा प्रमुख रूप है. वर्ष 1990 से इसमें 130 फीसदी की वृद्धि हुई है. वर्ष 2013 में यह पुरुषों में सबसे अधिक होनेवाला कैंसर था. वैसे पुरुषों में फेफड़े का, जबकि महिलाओं में स्तन कैंसर सबसे अधिक होता रहा है, और सर्वाधिक मौतें पेट के कैंसर से होती हैं. पिछले वर्ष लांसेट जर्नल में प्रकाशित एक शोध में बताया गया था कि देश में हर वर्ष करीब 10 लाख नये कैंसर रोगी सामने आते हैं, जिनमें छह से सात लाख असमय काल-कवलित हो जाते हैं.
कुल व्यस्क मौतों में यह आंकड़ा छह फीसदी के आसपास है. गंभीर चिंता का विषय यह है कि इस खतरे से निपटने के लिए सरकार के स्तर पर कोई सुविचारित बड़ी पहल नहीं हो रही. सवा अरब लोगों के देश में करीब 1,200 कैंसर विशेषज्ञ ही हैं. 60 फीसदी से अधिक कैंसर रोगी पहले आम चिकित्सक के पास जाते हैं, जो कैंसर के संकेतों को समझने के लिए प्रशिक्षित नहीं होते. जागरूकता की कमी के कारण भी रोगी सही समय पर चिकित्सक के पास नहीं जा पाते हैं.
80 फीसदी रोगी तब अस्पताल पहुंचते हैं, जब कैंसर लाइलाज हो चुका होता है. तंबाकू का बढ़ता उपयोग और बढ़ते प्रदूषण ने इस खतरे को बहुत बढ़ा दिया है, पर विकास की नीतियां इनके खतरों के मद्देनजर नहीं, विकास दर एवं कर से प्राप्त आय के मद्देनजर तय हो रही हैं.
उम्मीद करनी चाहिए कि ताजा रिपोर्ट के बाद सरकार कैंसर के प्रति जागरूकता बढ़ाने और लाइलाज होने से पहले बीमारी की पहचान की व्यवस्था के प्रति गंभीरता से सोचेगी, क्योंकि बीमार होती आबादी से विकास के लक्ष्यों को हासिल करना मुमकिन नहीं होगा.

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