साधुओं की साधुता खतरे में

एक वक्त था जब साधु, संत और ऋ षि–मुनि जन ज्ञान, त्याग–तपस्या और भक्ति भावना की तपोमूर्ति होते थे और रास्ते से उन्हें आते देख राजा भी अपनी सवारी से उतर कर उनके चरण स्पर्श से आशीर्वाद प्राप्त करते थे. वह सतयुग था. लेकिन आज दुर्भाग्य से इस कलियुग में मनुष्य का जो पतन हो […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 20, 2013 3:48 AM

एक वक्त था जब साधु, संत और षिमुनि जन ज्ञान, त्यागतपस्या और भक्ति भावना की तपोमूर्ति होते थे और रास्ते से उन्हें आते देख राजा भी अपनी सवारी से उतर कर उनके चरण स्पर्श से आशीर्वाद प्राप्त करते थे.

वह सतयुग था. लेकिन आज दुर्भाग्य से इस कलियुग में मनुष्य का जो पतन हो चुका है, वह किसी से छिपा नहीं है. आज एक नन्ही बच्ची से लेकर एक वृद्ध विधवा और विक्षिप्ता तक भी सुरक्षित नहीं है.

दुर्भाग्य से उसे उपभोग की वस्तु मात्र मान लिया गया है. बलात्कार जैसे जघन्य अपराध पूरे जोरों पर हैं. आज साधुसंतों की भरमार हर जगह है. ये लोग भी आज ज्यादातर मेहनत और ईमानदारी की रोटी खाकर जुल्मों और जुर्मो पर ही फलफूल रहे हैं. आज भिखारियों और ऐसे साधुसंतों में कोई अंतर ही नहीं रह गया है. इनकी बड़ी फौज और बरात हर जगह दिखाई देती है.

वेद मामूरपुर, नरेला, दिल्ली

Next Article

Exit mobile version