भारतीय नेता जब अमेरिका और चीन को पीछे छोड़ने की बात करते हैं, तो मन में एक सवाल उठता है कि जिन नेताओं की मानसिकता हिंदू–मुसलिम से अभी बाहर नहीं निकल सकी है, वे भारत को चीन और अमेरिका से आगे कैसे ले जा सकते हैं!
ये लोग तो हिंदू–मुसलिम में ही जीते हैं और उसी में मर जाते हैं, पर कभी इनसान नहीं बन पाते. चुनाव के समय किसी नेता को हिंदुओं की चिंता होने लगती है, तो किसी को मुसलमानों की. गरीबी, बेरोजगारी भ्रष्टाचार जैसे सारे ज्वलंत मुद्दे गायब हो जाते हैं.
दरअसल इस देश की जनता अब भी सांप्रदायिकता के उसी जाल में फंसती है, जिसमें हमारे पाखंडी नेता दाना डाल कर बैठे रहते हैं. जिस दिन से इस देश में सांप्रदायिकता के आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण होना बंद हो जाये, उसी दिन से धर्म के नाम पर लोगों के बीच फासला कम होने लगेगा.
हरिश्चंद्र कुमार, पांकी, पलामू